भारतीय राजनीती और शासन | Bhartaya Rajniti Aur Sashan

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Bhartaya Rajniti Aur Sashan by के. आर. बम्वाल - K. R. Bamwal

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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१८५७ का भारतीय विद्रोह ५ सस्या मे ईसाई धमं की दीक्षा ग्रहण की । इस बात का पहले हो सकेत किया जा चुका है कि श्रग्रेज़ो ने भारतीयों को मानसिक एव आध्यात्मिक दासता के पाश में श्रावद्ध करने के लिये देश मे पार्चात्य रिक्षा-प्रणाली का सूत्रपात किया था। भ्रेग्रेज़ी भाषा तथा साहित्य के सौदयं तथा पारचात्य विचारो की प्राजलता ने भारत के शिक्षित वर्ग को मोह लिया । इस प्रकार, वे ही लोग जिनका देश के लिए सबसे श्रधिक महत्व या, डाक्टर्‌ पद्ाभि सीतारामय्या के शब्दो मे “विदेदी गासन के उपासक” वन गये । “उस समय जबकि किसान श्रौर कारीगर विदेणी शासन के जुए में श्रपनी अन्तिम घडियाँ गिन रहे थे, राष्ट्र भौतिक, श्रौद्योगिक, बौद्धिक श्रौर नैतिक रूप से दिवालिया हो रहा था, श्रगरेजियत के रगमे रगे भारतीय नौकरियो तथा पदवृद्धि के लिये सधपं कर रहे थे । यह एक एमे दुबल एव पुरुषत्वहीन राष्ट का चित्र था जो न केवल अपना बल ही अपितु आत्मविदवाम भी खो बेठा था श्र झ्रव अत्यन्त असहाय एव दयनीय श्रवस्था में विदेशी लासकों की कृपाकोर का याचक था ।” * ३. १८४७ का भारतीय विद्रोह १८५७ का सिपाही विद्रोह भारत के राष्ट्रीय इतिहास की प्रथम महत्वपुरां घटना है । कतिपय यूरोपीय इतिहासकारो का हृष्टिकोख रहा टै कि वह केवल उन थोडे से ग्रसन्तुष्ट॒ सिपाहियो का ही विद्रोह था जिन्हे कुछ अधिकारच्युत एव प्रतिष्ठा- हीन सामन्तो ने श्रपने स्वाथं-साधन के लिये भडका दिया था। इसमे तो कोई सन्देह नही कि विद्रोह उस स्वतन्त्रता-्रान्दोलन से स्वंथा भिन्न था जिसका मूत्रपात १८५० से काग्रेस की स्थापना के परचात्‌ हुआ । विद्रोह के सगठन में शिथिलता थी एवं उसे जनता की वास्तविक तथा झनवरत महायता भी नहीं मिली । इसके प्रतिरिक्त विद्रोह एक प्रजातात्रिक श्रौर प्रगतिशील श्रान्दोलन होने की श्रपेक्षा एक प्रतिगामी आन्दोलन ही अधिक था । लेकिन फिर भी, वह भारत की स्वतन्त्रता का प्रथम युद्ध था, ब्रिटिश शासन को जड से उखाड कर फेक देने का एक प्रचड श्रौर गौरवपूरणं प्रयास था । उसने विदेशी शासन के प्रति भारत की निष्क्रिय झाधघीनता के युग का भ्रन्त कर दिया । इसके उपरात राष्ट्रीय स्वतन्त्रता का सघषं, यद्यपि मब उसका रूप दूसरा था, बराबर भ्रागे बढता गया श्रौर वह १५ श्रगस्त १९४७ तक जबकि भारत ने विदेशी गासन से मुक्ति प्राप्त की, जारी रहा । सन सत्तावन का विद्रोह त्रिटिश शासन के प्रभाव से उत्पन्न हए भारतीय जनता के भ्रतुल श्रसन्तोष का श्राकस्मिक विस्फोट था। ईस्ट इण्डिया कम्पनी के लोलुप न बाण स लिन्लनाा स # डा. सीतारामय्या : हिरी राक दि नेशनलिस्ट मूवमेट श्न इंडिया, पू ७०८ ।»




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