इतिहास एक प्रवचन | Itihas Ek Pranvachan

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Itihas Ek Pranvachan by अलभद्र प्रसाद मिश्र - Albhadra Prasad Mishra

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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इंतिहास, एक प्रवंचना जी पर ही आधारित होता है, सही माने में तथ्यपूर्ण विवरण न होकर परम्परागत स्वीकृत विवेचनों की श्ंखला मात्र होती है वास्तव में 'परम्पराओं के सरल और संक्षिप्त किये जिस विवरण को लोग इतिहास का नाम देने कं अभ्यासी टो गये है वह विभिन्न प्रकार से सरल और संक्षिप्त किया जाता है । इतिहास के शास्त्रीय विवेचन वाले प्रंथों में (सम्भवतः ) स्कूली इतिहास पुस्तकों की अपेक्षा संक्षेपी- करण की मात्रा कम होती है ; परन्तु यह प्रक्रिया मौजूद दोनों कोटि की रचनाओं मे रहती है और इसलिए उस हद तक दोनो ही असत्य होती है । आज सम्पूर्णं ससार जानता है कि राजनीतिक प्रचार के किए इतिहास मनमाने ढंग से तोडा-मरोड़ा जाता है । परन्तु इस बात को थोड़े ही लोग समझते है कि “दि डिक्लाइन एण्ड फाल' से लेकर 'लिटिल आर्थसं इंग्लैंड' तक इतिहास की प्रत्येक पुस्तक एकं विष तथ्य प्रतिपादिते करता है जो जान-बूझकर या अनजाने ही पूर्वा- ग्रह युक्त होता है । हमे मालूम ही है कि गिबन ने बडी चतुराई से ईसाई धमं का खूब परिहास किया है । परन्तु 'लिटिल आध्थर्स इंग्लैड' में भी इतिहास का स्वरूप अंग्रेजी रंग से अत्यघिक रंँगा हुआ तो है ही, 'लिटिल आर्थर' (छोटे अंग्रेज बच्चो) कै उपयुक्त बनाने के लिए उसे और भी लीपा-पोता (शुद्ध भाव से ही) गया है । ये दोनों पुस्तकें अभी तक प्रचलित है और कई पीढ़ियो के पाठकों को सन्तुष्ट करती रही है । इसका स्पष्ट अर्थं यही है कि इन पुस्तकों में अपने जमाने का अरुचिकर पुर्वाग्रह नही है । गिबन और लिटिल आर्थर से भिन्न ऐसी हजारों, सभी स्तर की, इतिहास पुस्तकों की तो चर्चा ही व्यर्थ है जिन्हे एक पीढ़ी के लोग तो बडी उत्सुकतापुर्वक पढते है किन्तु उसके बाद कौ पीठी कं लोग प्रत्यक्षतः उन्हे, विवरण के पुराने पड़ जाने कं कारण, हाथसे दूते भी नही हं । इतिहास की जिन पुस्तको की उन्नीसवी शतान्दी मँ अत्यधिक माग थौ उनमे से कितनी आज एेसी बची हूँ जिन्हें हम आजकल आनन्द प्राप्त करने के लिए पठना चाहते ह । भाज मेकालें अत्यन्त 'हिंवग' दृष्टिकोण के लेखक लगते है, फ्रोउड अति साधारण, सीली १. जी. बाराक्लोग : “हिस्ट्री इन ए चेजिंग वल्ड' । २. सी. वी. वेजदुड : “दि थर्टों इवसं वार ।




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