यह चेहरा क्या तुम्हारा है ? | Yeh Chehra Kya Tumhara Hai ?

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Yeh Chehra Kya Tumhara Hai ? by लक्षमीघर मालवीय - Lakshmighar Maalivya

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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कांच / 17 जायह लीजिये ।-- लक्ष्मण ने उसके हाथ में प्रिंट पकडाया। कासिंदी ने देखा, कालिदी ने फोटो उतारते समय रसे ही फोटो देखे थे । गीले प्रिंट के एक कोने से पादी की बूंदें कालिंदी के परो पर टप-टप गिरने लगी 1 मुलमुलाती आंखों से उसे एकटक देखते-देतते अचानक कालिदीको नजाने बया हुआ कि वहू अपनी गड़सठ साल की उम्र भूल कर एक छोटे-से बच्चे की तरह दोनों बांहों से लदमण के गले से लिपट गया--वाह प्यारे लच्छू ! हर्पातिरेक में बहू वाईँ कांस और दोनों रानों के बीच के सफेद दाग वाले लक्ष्मण से परहेज करना भी भूल गया, उस समय ! --और कोई ऐसे काम हो तो बता दीजिए । - लक्ष्मण कालिंदी की धीरे से परे करते हुए बोला--मुझे एक जगह ऐसे जाना है । --कहा ?--का्तिरी नेयो ही पूछ लिया। जानकी चासने रसे साथ पिवचर दिघा लाने को कटा है, मुकुर । कािदीने सुन लिया! बोला -तो घर पर सब्जी का यह थैला दे देना और बिद्दो से कह देना कि रात की तरह मार गरम मसाला नभोक देंगी चॉराई में । बल रात भर नीद ही नहीं भाई खासी के मारे । लक्ष्मण ने दालान की सूटी पर से बंद गले का काला गरम कोट उतारकर पहना और चप्यलो मे पैर डालकर सीढियां उतर गया । पिछले ही सप्ताह कालिंदी ने अपने गरम कपड़े निकाले तो बन्द गले का वह काला कीट उसने लक्ष्मण को दे दिया कि लक्ष्मण पहने, अब मुके कहां बाहर आना-जाना रहता है। सफेद सुत्ती पतलून के ऊपर बन्द गले का काला कोट पहनकर लक्ष्मण विर्कुल वकील की तरह लगता था । कालिंदी ने गीला प्रिंट फेरोप्लेट पर चिपका दिया और बोरसी के आगे उकड़ूं बैठकर उसे सुखाने लगा । बीरसी में से उठती अपजले उपलों की सोंधी-कड़वी गंध नाक तक पहुंची तो अच्छी लगी उसे उस रोज । लेन्स के आगे लगा ढककन खोलता है वह और हाथ कलाई पर से धुमाकर लेन्स बन्द कर देता है तो कमरे के अन्दर बग्द हो जाता है एक अक्स ! पचीसों वर्ष हो गए उसे फोटो उतारते, भव तक वह इतना ही जानता था लेकिन उतरते कातिक की उस शाम को सुखा हुआ भ्रट दोनों हाथो से उठाकर देखते हए उसने पहली बार पहचाना कि एक अक्स अन्दर बन्द ही मह्ी होता बल्कि अपने अतीत की कचोट का एक अवस बाहर निकलकर आंलो से आसू भी छलका दे सकता है । उसी अक्स को कारलिदी देर तक देखता रह गया 1 अक्सो की ही थाती मिलो थी उसे अपने पिता से और मोतियाबिंद से घुषली अपनी पुतलियों के भीतर रोशनी की मतिम किरण के पहुंचते रहने तक वह उस बिरासत को खोना नहीं चाहता था 1 एक बढई या लौहार, मोची, जुलाहा




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