परापार | Paarapaar

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Paarapaar by वीरेंद्र नाथ मिश्र - Virendra Nath Mishraशीर्पेंदु मुखोपाध्याय - Shirpendu Mukhopadhyay

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वीरेंद्र नाथ मिश्र - Virendra Nath Mishra

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शीर्पेंदु मुखोपाध्याय - Shirpendu Mukhopadhyay

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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| खुद घो अैटा मसू करेगा ! हयो स्ता है वह कमी-कमार युहल्ने म निकटे । दो-चार घर से मा की सगिनियां मे से कोइ आवाज देगी, छस्ति। दृहा जा रहा है ? भा येण; अदर आ ।-+और फिर मा का रोना रयेमी। आदमी यमने की नसीहत देगी । 'बिंदा, आत्मी को सम ऊठ करना चाहिए। उठ भी उोडने का नहीं । हर काम का मतल्य होता है अय। जरा मा को देखो । बेचारी के जीवन मे अमन कया है ?. तुम्हीं योछो, क्या है ? इतना पडा ग्रह ऊट गया । अम जरथ-से-जलग विगाहक्रठेवेा] क्मसेक्ममेचायै का मुह देस कर त। मरेगी । कलित यह जानता है. गली की फ्रिभी सुनक्षान जगह खड़ा द्य वह ठोथीन्छोदी यबच्चियाँ का एका-दुका सेलना देसेगा। हा सकता है कुठेक क्षण देखने ॐ याद पीड़े से किसी की चोटी सींच लेगा। बच्ची सीक कर देगेगी और दह ल उदगा, कैसी है री स्गर ” मुहर के टी-स्टाठ मे भी वक्त गुजारा जा सकता है। बहा सुल्ब्ठे की ठोकरों ॐी मैक जमी रतीहै। उनम से कोई उसका दोस्त नहीं है। सय परिंचित हैं। थोडा अदय करते हैं । फिर भी उनरे साथ वक्त तो गुजर ही सकता है ।. स्कूठ से उसने रम्बी छुट्टी ऊे रखी है, हो सकता है योड़ा और अच्छा महसूस करते ही वह ष्क जाय । शायन प जैना ही उसे समूल जाना अच्छा नल्गेऽपर वक्त तो गुजर ही जायेगा । वक्त! अम वक्त ही भला कितना दै! वह मा और वलभी फौ आवाज सुन रहाथा। नाये प्यके म चम्मच चलने की आवाज ।. मा तुछ्यी के छिए चाव बना रही है। उमने उधर ताक तर नहीं| उषती परकें परस्पर चिपकी रहीं ।. यह ठीफ है कि दा महीने घाट आज की वापसीम जग भी खुशी महीः । ठेतिनि मितु नगर उसकी घरयाली होती ! सोचते ही उसके तन-मन म पुल्फ गी ल्टर टीट गयी। मतु होती ता--मि होती तो--लेकिन मितु तो उसकी हुई नहीं 1 होने की यात भी ने थी ।. मिलु पड़े घर की मेरी है । गेट पर योगनमेछिया की भाड़ जौर गेरेज मे एक ठोशी-ही गाड़ी |. लुन का यडा हताश मदसम करता था ललित |. कमी-क्मार स्कूल जते वक्त मिवु रीस जाती थी। उसे ऐसा ख्गता था कि वह मिलु के लिए सय छुख कर सकता है। सय ठु । जर्रत पड़ने पर दा-चार कल्ल कर सक्ता हैर गम मार क्र टो-चार सकान उड़ा सकता है। न्ते लिए बह इजारां आत्मियाँ से लोहा ले सकता है । आव्यं है, मिते साय कर कभी दो-चार चात भी मे कर सका |. पडा जच्छा लड़का था लल्ति-धीर, नात, ल्जील और डरपोक |. मिलु से यात करने जेसा पाप वह कभी न कर सझा ! _ हा; मित॒ को देखते ही उनका मन मचल जाता; सु ह का पानी सूख जाता । ५ मू, ड मन-री-मन मितु का मग पकटता; सन-दी-मन आयात देता; 'मितु, ५.




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