आठवें दशक के लोग | Aathaven Dashak Ke Log

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Aathaven Dashak Ke Log by बलराम - Balramमनीषराय - Manish Ray

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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छोटा टेलोफोन बडा टेलीफोन / १७ “इनका स्कूटर चारी हुआ या सर ।” थानदार ने मरी आर सकते किया । अधेड व्यक्ति न चोट याये नाग की तरह फन उठाकर थानंदार को देवा । थानेदार सिकुड गया । कोई गलती हुई सर !” थानेदार विछ गया । “में लडवे को ले जा रहा हू । अपनी जेव से एक कागज निकालकर मेज पर फेंक दिया। नौजवान वे होठा पर वाटो फी तरह मुम्कान उम मायौ । उसने चारी-वारी स मुसे और थानदार वो देखा । और फश पर रुझू ठक्‌ जूते बजाता धान से बाहर हो गया । इस सार के सार नाटक के तजी सं बदलते दुश्या न मु सन्नाहीन-सा चर दिया था । अधेट व्यक्ति ने मुझे साथ आने का इशारा किया | मैं ममकीलित-सा उसके पीछे हो लिया । थानदार भी मुस्तद था । दा छलागा मेहो महक पर पहुंच गया और बार वा दरवाजा योनगर खड़ा हो गया, गुलाम की सुद्रा म, “ठोक है। ठीव है। यु कत गो साठ 1” अधेड व्यक्ति सुचवाया । थानेदार अडा रहा । “भाई से, यू बन यो नाक इस दुखी ने थानेदार का वित कर दिया 1 सैल्यूट झाड़न की बनवती इच्छा उसने अदर कटदार गोले की तरह धूमती रह्‌ गयी । यह चना गया । “जाई थिक यू शुद्ध वियड़ा दिस केस मघेड व्यक्ति ने सिगार को दाता सले कुचलकर मामसान की ओर उछाल दिया । तभी कार की पिछली सीट से नीजवान का सिर {बाह्रं निका, (लीव इट ठैड 1” भे व्यमि न चार का दरवाजा पोला । एक पाव कार के अदर रखा + फिर अचानक पलटवर कहा, “बाई द वे कितना मुक्सान हुआ है तुम्टारा।' नीर उता शुक हाथ जेब में लटक गया 1 मेरे दिमाग में एक विस्फोट हुआ। और इसके साथ ही सारा तिलिस्म टुकडे-ट्कडे हो गया । मुझे लगा, यह हाथ जेब में नहीं गया है, बल्वि इसवी उगनिया छोटे-ठोट सापा की तरह मर चेतना बिलो में उतर रही हैं। उततरती जा रही हैं ।




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