अंतर्राष्ट्रीय सम्बन्ध अधुनातन परिवेश में | Antarashtriya Sanbandh Adhunatan Parivesh Mein

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दामोदर शर्मा - Damodar Sharma

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रमेश दाधीच - Ramesh Dadhich

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वी० के० अरोड़ा - V. K. Arora

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हरगोविंद पन्त - Hargovind Pant

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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झध्याप--ई ससार व्यापी महासमर की पूवं वेला मे हम यह प्रारभमेही स्पष्ट करना चाहेगे कि इस अध्याय में हमारा लक्ष्य द्वितीय महासमर के उपरात की दुनिया की विवेचना करना है, क्योकि हम उस महासमर षौ प्रूव पीठिका वी चर्चा अयतर' भी कर चुके हैं जिसने सितम्बर! 939 से यूरोप के दव्निशाली “शो को अपनी लपेट में लेकर अगले वर्षों के अदर समूचे यूरोप को अपनी विभीधिका का शिकार बना लिया । यह महासमर केवल यूरोपीय महाद्वीप तक फैली लड़ाई नही रह गई । एशिया भौर प्रशा त महासागरीयक्षेत्रमे चीन भौर अ-य एशियाई प्रदशो को मपने-अपनेक्षेत्रमे तेने कौ प्रतिस्पर्धा मे पर्ल. हावर की वमबारी के वाद अमेरिका भौर जापान के बीच जबदस्त भिड़ त हुई मौर युद्ध भव केवल चीन जापान के बीच चला मा रहा साम्राज्यवादी युद्ध मात्र ही नहीं रह गया। महासमर की विकरासत लपेटो मे जब यूरोप और एशिया के विशाल जन समुदाय भुलसने और मुनने लगे, तब यह स्वाभाविक ही था कि दुनिया के अय लण्डा तक इनकी चिनगारिया फलने लगे । इस प्रकार यह महा- समर सही मायने मै एक ससार व्यापी महाभारतं बनं गथा । केवल युद्ध के फलाव की वजहसे ही नही, भय कारणो सते भी यहं महासमर पुबवर्ती प्रथम महायुद्ध से भिन लगने लगा बट्कि, ऐसा कहा जाना चाहिये कि यही युद्ध वस्तुत पहला ससारव्यापी युद्ध था जो प्रारम तो हुआ था एशियाई और युरोपीय देशो मे आपसी गह युद्ध के रूप में पर तेजी से इसका फौलाव बढता गया । इस युद्ध की दो विशेषताएं दप्टव्य हैं । प्रथम यह कि युरोप और एशिया मे टकरा रही विरोधी ताकर्तें ब्गपस में एक दूसरे से सहयोग कर अपनी लडाई के दायरे में धूरी दुनिया को ला रही थी । प्रिटेन व अमेरिका युरोप मे जमनी और इटली से, इसी तरह एशिया में जापान से मिड रहे थे, ऐसी बुछ स्थिति सोवियत सघ की भी थी । उसमें एक फक यहू था कि जापान के साय उसकी अनाक्रमण सधि महा- युद्धके अततिम चरण तक बरकरार रही जिससे उसे यूरोपीय मोर्चे मे ही लडना पडा । दूसरी जौर जापान, जमंनी तथा इटली ने भूरोष मौर एचिया-अफ़ीका मे ब्रिटेत, फास तथा अमेरिका को चुनौती दी । इस दृष्टि से जापान को भी सोवियत




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