नंदन - निकुंज | Nandan Nikunj

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Nandan Nikunj by प्रो. चंडीप्रसाद - Prof. Chandi Prasad

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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प्र्न्परिणाम ११ श्ववारे शैलेद्रः , ष्माज कै दिनों के उपरत तुम्द पत्र लिखने का अवकाशं सिला । चुम्हें भली भाँति विदित है कि मुभ पत्र लिने में कितनी फठिनाइयाँ दोती हैं । रित छल नदी, जिसमें तुम्दारे हृदय षो सुल प्नौर शांति भिते, वही मेर श्रभीषठ है । इस बरहत्‌ संसार में मुभे यदि केाई चिंता है; ते तुम्हें प्रसन्न करने की । तुम्हारे, कमनीय मुखचंद्र पर एक बार मधुर द्ार्य-रेखा देखने के लिये मैं क्या नहीं दे सकती हूँ ? सुना है, श्राजकल तुम्हारा स्वास्थ्य कम खराब है । राजराजेश्वरी तुम्दें शीघ्र 'झच्छा करें । तुम्ददारी प्यारी ख्री कल कहती थीं--'बद्दन, तुम्रं उने च्छा कर सकती हो । एक बार उन्हें यहाँ बुला लो ।' में झापना सब कुछ देकर भी तुम्हें अच्छा करना चाहती हू स्तु बह भाली- भाती लकरी नहीं जानती है कि जिस पुष्प-दीट ने इस पाएि शत में छिपकर उसे सत्यानाशा किया है, उपे केवत जगदीश्वर ही श्रच्छा कर सकता है । वद्द बेचारी क्या जाने कि जो तुम्हारी दशा रै, बहो मेरो भी रै । श्रच्छा) श्रव तुम जर्ष तक हो सके, शीघ्र श्रा जादी | दो नहीं; चार सयम-चकार चंद्रन्दशेन को लाज़ायित दो रहे हैं । अधिक कया । पन्ये दी सरला ^ पन्न एक बार, दो बार) कई बार पढ़ा । हुदय का उद्देंग षदुने बागा। कल्पना कर ने लगेन-'देखो, इन दो शियों में इतना प्रेस




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