मेरी प्रिय कहानियाँ | Meri Priya Kahaniyan

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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वरिए छिमा जि १७ गया । लोव लाज वे भय से ताऊ ने उसे भ्रपने पास धुला लिया । ताई वे दुष्यंवहार भौर पहाड़ी पगडडियो के उतार चढ़ास ने उसे जीवन मे उतार चढाव के दुर्ह पाठ मो समय से पूव ही रटावर पढ़ पर दिया था। इसीसे उच्च पदा रूढ होत ही उसने भपनी समग्र धक्ति भपनी पिछड़ी जमभूमि ये शिक्षा सुघार वी घोर लगा दी थी । यह उसीवी भटूट निष्ठा वा फल था वि भाज उन दुगम शंपिदिसरों पर जहा पहले चिडिया भी नही चहवती थी इतिहास भूगोल भोर गणित वी व्यास्याए गूजने लगी थी । वह्डी कही पर तो उसने घतते फिरते स्कूल भी सुलया दिए थे । हिमपात होते ही सच्चरो पर लदा हेडमास्टर प्रघ्यापक भ्रौर विद्याधियों सहित पूरे स्कूल था स्कूल घाटी मे उतर श्राता । इसीसे एव ही चुनाव थी नहीं भगले बई चुनावों की विजय पताका एव साथ सिलवा वह मूछा में ताव देता निर्दिचित बैठ सकता था । गम चूदीदार पटटू वी दोरवानी मोर नुवोली सफेद टोपीपारी उस सोम्य संत वे भापण के बीच जनता जनादसे यो चू करने वा भी साहस न होता 1 भाषण वे एव एक चुने घक्य सोतिथी बी लडियों वी तरह स्वय गुथते चले श्राते । यहां तय वि. उसवी किस उक्ति पर तालियो की गगनभेदी गडगडाहट गूजेगी यह नी उसे पहले से जात हो जाता भौर घह स्वय विराम अ्रघविराम लगाता रहता । श्रोताश्री को वय मात भाषा वी फूलमड़ी से गुरगुदाना होगा बव श्रपरी श्रजित म्रस्तर्रष्ट्रीय रयाति वा प्रसंग कस छेडना होगा वि दर्पोक्ति न लगे यह सब वह राजनीति के कुटिल खिलाडी भली भाति समभना था । सहसा वहू दपण के सम्मुसल विसीबी कुछ न समभने वाली नेपोलियन वी गर्वीली मुद्रा मे खड़ा हो गया | उसका गव मिथ्या नही था । जिन ग्रामा में बभी सिट्री के तेल की बाती भी नहीं दपदपाई थी वही श्राज उसके प्रयास से पहाड़ी की वेगवती श्रलकन दा को बाय विद्युत प्रचाहिनी उज्ज्वलता बिखेर दी गई थी । पर इस टोपी के ताज ने कया उसे बिना कुछ किए ही बादशाह वना दिया था ? क्या पुलिस की निमम ताठियों ने उसकी यसलियो का चूरा बनाकर नहीं घर दिया था दुर्दात गोरे सिपाहियों के बटनों ने कया उसकी दोनो कमान सो घनी भकुटिया के बीच लम्बा घाव स्वत बता के विजप तिलक के रूप म सदा सदा के लिए सजावर नहीं रस दिया था श्रौर फिर अझल्मोडा जेल की चारदीवारी मे स्वेच्छा से ही वदी वना दिया गया उसवा यौवन नैनी जेल की सडी गरमी श्रौर लू की श्रविस्म रणीय लपटों से भुलसा दिया गया जवानी वा वाक्पन कया सहज मे भुलाया जा सकता था ? पर क्या वेवल देशप्रेम ने ही उसे सवस्व त्यागी बनने का श्रामतण दिया था ? अचानक थीघर के उल्लास वी ज्योति स्वय घीमी पड गई । क्यो भाग गया था वह गाव छोडबर ? जान बूककर ही श्रग्रेज कमिइनर के बगले के सम्मुस ग्रनावश्यव धरना देकर क्या हथवडिया को रक्षाब घन वी भाति ग्रहण करने को उसने




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