गाँव की बेटी | Gaon Ki Beti
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
7 MB
कुल पष्ठ :
240
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)गावि क्री बेरी [ १३
“किन्तु नारी की मानसिक शक्ति पुरुष के शारीरिक एवं मानसिक
दोनों तत्वों से श्रधिक सबल होती है काका !”
मुखिया राम हँस पढ़े । बोले--“बेटी ! तू उसे जान कर भी श्रन जाने
नम रहो है । गाँव की कौन ऐसी नारी हैं, जो उसके चरिन्न से परिचित
न हो--1 ।
प्रौर फिर भी तूम लोग उसका विरोध नहीं करते. . . क्यों नहीं सरपंच
के पद से हटाकर उसे, . .।””
“उसे हुदाना सरल महीं वेटा !””
“क्यों. ..क्या वह् जनता के चिरोघ पर भी नहीं हट सकता ? ”
मगर जनता कर सके ` लेकिन जानती हो, जनता तब तक क्रान्ति
नहीं करती, जव तक दमन.भ्रष्टाचार का बो पृथ्वी पर ग्रधिक नहीं हो
जाता |
तब वह इसी तरह करता रहैगा.. श्रौर हम सब्र सहते रहैगे...क्या
हमारे गव में कोई ऐसा नहीं, जो उसके विरोध में जनता को खड़ा कर
सके {“
मुखिया राम कुछ सोचते हुए, बोले - हा ...; क्यों नहीं { परन्तु वह्
हमसे पाँच मील दुर है । उसके कायं क्रम मे, उसकी निस्वार्थ सेवा ने जनता
को जीत लिया है, यदि वह चाह तो जनता की प्रावाज को उसके साथ
मिलाकर उसे पद से हटा सकता है ! ”
“पर लोग, स्वतंत्र होकर भी इस तरह पदाधिकारियों कौ शासक
'पद्धति के विरोध में श्रावाज क्यों नहीं उठाते ?”
“इसलिए कि उसके पास घन है, भर म्राज का जन ! ऐसा जन जो व्यक्ति-
गत सुख-स्वाथ के लिए जन के साथ ऐसा व्यवहार करता है । इसका निवारण
है, वेह परदेशी जो उस दिन भ्राया था श्रौर जनता के बीच तीन दिन में ही
'सर्वसान्य हो गया था । याद है, तुझे उसने कितने प्यार से कहा था-मधुमा ! मैं
फिर ध्राऊ गा, जब तुम बुलाशधोगी । पर-पर पगली तूने तो उसे भ्रूलकर भी
नहीं बुलाया, वह् चला गया श्रौर इस गाँव से पाँच मील की दूरी पर लड़कों
को बटोर कर एक बगीचे में पढ़ाता है । उन्हें तरह-तरह के काम करने, बनाने
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