गाँव की बेटी | Gaon Ki Beti

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Gaon Ki Beti  by सागर बालूपुरी - Sagar Balupuri

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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गावि क्री बेरी [ १३ “किन्तु नारी की मानसिक शक्ति पुरुष के शारीरिक एवं मानसिक दोनों तत्वों से श्रधिक सबल होती है काका !” मुखिया राम हँस पढ़े । बोले--“बेटी ! तू उसे जान कर भी श्रन जाने नम रहो है । गाँव की कौन ऐसी नारी हैं, जो उसके चरिन्न से परिचित न हो--1 । प्रौर फिर भी तूम लोग उसका विरोध नहीं करते. . . क्यों नहीं सरपंच के पद से हटाकर उसे, . .।”” “उसे हुदाना सरल महीं वेटा !”” “क्यों. ..क्या वह्‌ जनता के चिरोघ पर भी नहीं हट सकता ? ” मगर जनता कर सके ` लेकिन जानती हो, जनता तब तक क्रान्ति नहीं करती, जव तक दमन.भ्रष्टाचार का बो पृथ्वी पर ग्रधिक नहीं हो जाता | तब वह इसी तरह करता रहैगा.. श्रौर हम सब्र सहते रहैगे...क्या हमारे गव में कोई ऐसा नहीं, जो उसके विरोध में जनता को खड़ा कर सके {“ मुखिया राम कुछ सोचते हुए, बोले - हा ...; क्यों नहीं { परन्तु वह्‌ हमसे पाँच मील दुर है । उसके कायं क्रम मे, उसकी निस्वार्थ सेवा ने जनता को जीत लिया है, यदि वह चाह तो जनता की प्रावाज को उसके साथ मिलाकर उसे पद से हटा सकता है ! ” “पर लोग, स्वतंत्र होकर भी इस तरह पदाधिकारियों कौ शासक 'पद्धति के विरोध में श्रावाज क्यों नहीं उठाते ?” “इसलिए कि उसके पास घन है, भर म्राज का जन ! ऐसा जन जो व्यक्ति- गत सुख-स्वाथ के लिए जन के साथ ऐसा व्यवहार करता है । इसका निवारण है, वेह परदेशी जो उस दिन भ्राया था श्रौर जनता के बीच तीन दिन में ही 'सर्वसान्य हो गया था । याद है, तुझे उसने कितने प्यार से कहा था-मधुमा ! मैं फिर ध्राऊ गा, जब तुम बुलाशधोगी । पर-पर पगली तूने तो उसे भ्रूलकर भी नहीं बुलाया, वह्‌ चला गया श्रौर इस गाँव से पाँच मील की दूरी पर लड़कों को बटोर कर एक बगीचे में पढ़ाता है । उन्हें तरह-तरह के काम करने, बनाने




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