रोटी का सवाल | Roti Ka Sawal

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Book Image : रोटी का सवाल  - Roti Ka Sawal

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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हमारा धन ॐ कपड़ा तैयार कर ठेते है । कोयरेकी सुन्यवस्थित खानोंमें सो खनिकों की सेहनतसे हर सार इतना कोयला निकछ आता है कि दस हज़ार ऊुट्टस्वोंको सरदीके दिनॉम काफ़ी गरमी मिल सके । हाल में डी एक और भदूसुत श्य देखनेमे आने र्गा है। बढ़ यह कि अस्तर्राष्ट्रीय प्रदुशनियोंके अवसरपर कुछ सासमें ही धहरके धहर बस जाते हैं। उने राके नियमित कार्यमे ज्ञरा-सी भी बाधा नहीं पढ़ती । भले ही उद्योग-घन्घों या छृषिमें--नहीं-नहीं, हमारी सारी सामाजिक व्यवस्थमे--हमारे पूर्वजोंके परिश्रम भौर भाविष्कारोंका लाम मुख्यतः सुद्दोभर लोगों को टी सिरता हो, फिर भी यह बात -निर्विवाद है कि फौराद ओर रोदेके उपरूग्ध प्राणिर्योकी मदद्से आज भी इतनी सामग्री उत्पन्न की जासकती है कि हरं एक आदमीके दिए सुखं भौर सम्पन्नत्यक्रा जीवन संभव हो जाय । घस्तुतः म सददध हो गये ह । हमारी सस्पत्ति, इम जितनी समझते हैं, उससे कहीं ज्यादा है । जितनी सम्पत्ति दमारे जधिकारमें छा खुकी है वह भी कम नहीं है। उससे बढ़ा बह धन है जो इस सदीनों-द्वारा पैदा कर सकते हैं । इसारा सबसे बढ़ा घन चहद है जो टम अपनी भूसिसे विशान-द्वारा और कला-कौशरूके शानसे उपाजंन कर सकते हैं, बदर्ते कि इन सब साधनॉका उपयोग सबके सुखके छिए किया जाय । र्‌ इमारा सभ्य समाज धनवान है। फिर अधिकांश छोग गरीब क्यो हं १ साधारण जनवाके किए यह असद्य पिसाई क्यो है ? जब हमारे चारों ओर पूर्वजोंकी कमायी हुई सम्पत्तिके ढेर ऊगे हुए हैं, बतौर जब उत्पत्ति के इतने जबरदस्त साधन सौजूद हैं कि कुछ घण्टे रोन सेहनत करनेसे ही सबको निश्चित रूपसे सुख-सुविधा प्राप्त हों सकती है, तो फिर अच्छी-से-भच्छी सजदूरी पानेवाले श्रसजीवीको भी करुकी स्विन्ता क्यों नी रहती है ?




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