देवदूत गांघी | Devdoot Gandhi

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Book Image : देवदूत गांघी  - Devdoot Gandhi

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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[ ७. _] जिसने उस टरय को 'पनी गोली का निशाना चनाया जो जाति, घर्म 'यौर देश की सीमाश्यों से परे था ? इस पाप का सफसद कया दो सकता है ? चद दिन्दघमं को चचाने के लिये किया गया है ? कया इससे दिन्द-समाज की सेवा होंगी ? कया ऐसा करने से हिन्दूघर्म बचा लिया गया ? कया इस तरद दिन्दू- समाज की सेवा हो नड? द्िन्दृधमं भौर द्िन्दरू-समान की विविधता भरे दतिष्टास कं चेशुमार पन्नों को देख लाइये, शाप को ऐसे चुरे छोर धोखे से भरे हुए काम का दुसरा व्दाद्रण नरी मिलेगा} यद्‌ उष दतिष्टाम पर पेषरा च्रमिट कलंक, जो किसी तरह नद्दीं घुलेगा। दम दुखी हैं, दम भौचपो -से ऐं, तो क्या दम निराश हो जायें ? नांबीजी का शरीर शव में देखने को नहीं मिलेगा, 'झप दम उनकी व्राज नहीं सुन सकेंगे । मगर क्या वे हमे वेशकीमती मिशाल मारे लिये नहीं छोड़ गये हैं ? श्पने मार्ग में आागे बढ़ाने श्नीर सदारा देने के लिये कया उन्होंने दमारी काफी रघजुमाइ नहीं की भ्ोर इसमें फाफी प्रेरणा नहीं दी हिं। उस संकट के समय में उनफी ललफार एममें फिर से कत्तच्य की भावना जायूत करे । उन्दने सिट्रो में से पीये पैदा किये । गेरइन्साफो, दमन शरीर गुलामी फे खिलाफ पने जीवन-भर को लड़ाई में उन्दोंने पूर्ण हचियारों फा कुशलता से उपयोग किया । 'सच्छाइ को कायम करने के लिये शिन्ट्र्तान को चेसी हो घहादरी की, मेषी खतरों की, उपेक्षा करने की घोर उसी तरद नतीजों की तरफ




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