संत-साहित्य | Sant-sahitya

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Sant-sahitya by भुवनेश्वरनाथ मिश्र - Bhuvneshwarnath Mishra

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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साहिस्थ की प्रेरणा एके बाउल सत मे गाया है” भोपार धके, धजो ब्त, पए पार्‌ येके शनि) अभागिया मारी भयौ, सोतार साक्षि जनिभ वादि कानः वेः वशी सुमे, कै मरि। जीसु ना जु ना, भलि ना देखेंखे हरि ॥ सदी के उस पार से खड़े होकर तुम अपनी बॉसुरी बजा रहे हो श्र में इस पार खड़ी रहकर उसकी मधुर ध्वनि को सुन रहीं हूं ठ प्रियतम ! कया. सुस जानने नहीं हो कि में ब्मसागिसी तैरना जानवी ? में बंशी के नान नो सुगरर प्माएुश हो रही. हूँ; श्री्रि को. दर्शन कियें छिंगा न गी सारी १.




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