रूस की यात्रा | Rus Ki Yatra

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Rus Ki Yatra by हर्षदेव मालवीय - Harshdev Malviya

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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ख्स्फी फो इण्ठुस्की बहूत प्यारा है ४ यह तो समभ मे श्राया कि यदि रूस्की इण्डुस्की का दोस्त हुमा तो भ्रपनी पूरी भावुकता श्रौर दिल की सच्चाई के साय हृश्रा। फिर मी प्रश्न बना ही रहा यह दोस्ती हुई कैसे ? उत्तर मिलने में देर न लगी । सोवियत संघ श्रब चालीस वर्ष का है । चालीस वर्ष से उस देश के नागरिक को यही दिक्षा दी गई है कि साम्राज्यवाद ही रूस का सबसे बड़ा दुद्मन है, यही साम्राज्यवाद संसार के कोटि-कोरि मानवो का श्रौपतिवेशिक दमनं करता है, संसार के सब दलित पीडित मानवो काश्रौर स्स की जनता का संघर्ष एक ही है, सब पीड़ित दलित देश रूस्कियों के मित्र हैं, रूस उनका सहायक है । यह ज्ञान रूस के प्रत्येक नागरिक को है भ्रौर उस नाते ब्रिटिश साम्राज्यवाद से संघर्ष कर स्वतस्त्र होने वाला भारतीय तो उनका मित्र है ही । पर कुछ भ्रौर हौ गया इन्हीं वर्षों में । नेहरूजी रूस गये । रूस में उनका श्रदुमुत, श्रपुव स्वागत हुआ । रूस्की जनता ने हमारे राष्ट्रीय नेता के लिए श्रपना कलेजा बिछा दिया । झौर नेहरूजी ने रूस देश का नया समाजवादी मानव देखा । वे चले तो कहते झाए “नै श्रपने हृदय का एक टुकड़ा यहाँ छोड़ कर जा रहा हूँ ।” ऐसा शविरवान्‌ था उस गोरे देशंका गोरा प्यार । श्र मेहरूजी की' रूस यात्रा फा चलचित्र भारत के कोने-कोने मे देखा गया । नेहरू- जीने रूस्की मानव पर गहरा प्रभावे डाला । रूसी ने नेहरू कै द्वारा भारत को पहुंचाना । रूस्की जब “इण्डुस्की लुवलू ” कहता है तो साथ ही “नेहरू लुवलू” भी कहता है । ~ श्रौर फिर रूस के तेता स्‌ङ्नेवं श्रौर बुलगानिन भारत श्राए। दिल्‍ली के 'रामलीज़ा मेदान में सोवियत नेताग्रों के स्वागतं णुकत्रित दस लाख के जन-ससुह के सम्मुख नेहुरूली ने कहा, “सस




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