वस्त्र - विज्ञानं एवं परिधान पंचम संस्करण | Vastra-vigyan Avam Paridhan pancham Sanskaran
श्रेणी : विज्ञान / Science
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
35.75 MB
कुल पष्ठ :
720
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about डोक्टर प्रमिला वर्मा - Docter Prmila Verma
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)वस्त्र-विज्ञान का महत्त्व तथा गृह-विज्ञान से सब आया हैं। वस्त्लों का सामाज़िक जीवन में महत्त्वपूर्ण स्थान है अतः वस्त्-विज्ञान का अध्ययन सभी के लिए अनिवार्य है। वस्त्र मानव सभ्यता और सस्कृति के सूचक है । आज से ही नही प्रारम्भिक काल से ही मानव तन .ढँकने. का प्रयत्न करता रहा है। इस काम के लिए उसने आदिम युग में घास-फूस पेड़-पौघे पत्ते-छाल तथा मृत पशुओं की खाल आदि का प्रयोग किया । परन्तु मानव इतने से कव संतुष्ट होनेवाला था । उसकी तीन्र बुद्धि ने वस्त्नों की उत्त्ति के साधन एवं वस्वों को वुनकर तैयार करने की गला खोज निकाली । तव से अवतक वस्त्- निर्माण-कला में उत्तरोत्तर विकास होता रहा तथा इस दिशा में मनुष्य अनवरतरूप से प्रयत्नणील रहा । बुनी हुई चटाई तथा वटी हुई रस्सियों से उसे अपनी बुनियादी आवश्यकताओं की पुर्ति करने में सफलता मिली । सामानों. को ले भाने ले जाने शिकार को वाँघ कर लाने शिकार पकड़ने और फंसाने आदि अनेक कासों के लिए उसने तिनका तथा नरम टहनियों को गुँधक और चमड़े की पट्टियों से रस्सियाँ तथा डोरियाँ बनाई । वास्तव में इन्हे निर्मित करन की प्रक्रिया ही वस्न-निर्माण-कला की प्रेरणा वनी । श््ग्भी ०५ इस कला में दिनानुदिन उन्नति होती गई और इनसे चौड़ी पट्टियाँ बनाकर तन ढँकने .के लिए प्रारम्भिक प्रयास होने लगे । इसके साथ-साथ सानव ने वस्तोपयोगी रेशों की खोज की 1 उस समय मानव ने जिन रेशो की खोज की वे सभी प्रकृति प्रदत्त थे । पेड़-पीधीं से तथा पशुओं के बालों से प्राप्त रेशे ही वास्तव मे उस समय वस्त्रीं के निर्माण मे काम आते थे यद्यपि वस्त्री का स्वरूप वह नही था जो आाज हैं । अति-प्राचीन काल में जिन देशी की सम्यता और सस्कृति विकसित थी वहाँ सुन्दर वस्त्रों का निर्माण होने लगा था । मिस्र युनान तथा भारत सुन्दर वस्त्रों के निर्माण के लिए प्रसिद्ध थे। इसका प्रमाण ऐतिहासिक अवशेपों में मिलता हैं। टोस्टोरा के अनुसार पुफ्ूट 06वप्रांए घी पल्दॉरिध5 उं 1€्काए भ0एथा वुट्डटाएंट5 प्रा गा डर नि कक ए साइटप्रा05 न5 घ उह्शाए फटा एव फिट भध्पएटा भा85 णाएट दा. घातिंडं 5 ला घ5 फिट काटा काए06प०6 भी प्रब्टा। उटाएड ठैती फिट फिप €€ 5605 0 10%1105 पघिह. प्राप धरा फिट दिदशि ए0ांट्वा घाते फिड 865पिटाए प्रात फाकिफ्टित 8 कुत्ता उा। घ॥€ प्रड€5 एव ददि165 मिए्णा छिट पटाड व8ाप65/ विंशाट5 मध्यकालीन युग में भारत में राजाओं और सामतों के सरक्षण मे सुन्दर वस्त्नो का निर्माण होने लगा । राज-परिवार के लिए विशेषरूप से सुन्दर वस्त्नो का निर्माण होता था जिनमें अत्यधिक श्रम औौर समय लगता था भौर जो वारतव में कला के अद्वितीय अपुवं और अनोखे नमुने होते थे। उस काल के वस्त्र अपने कलात्मक सौन्दर्य के कारण राजा-रानियों को विशेषरूप से प्रिय थे और वस्त्र वनानेवाले स्वनिर्मित अपने द्वारा बनाए वस्तों के बदले में मनचाहे पुरस्कार और-पारिश्रमिक पाते थे। राजाओ के संरक्षण में वस्त्-निर्माण-कला फलने-फूलने लगी । अत्यंधिक सुध्ष्मता गौर भपु्व सौन्दर्य के लिए इन वस्त्रीं की प्रसिद्धि दूर-दूर तक फैल जाती थी विशेषकर तब जब कि इन्हें वे उपहार के रूप में अन्य देशों के शासकों को भेजते थे । समाज में
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