जैन शास्त्रों की असंगत बातें | Jain Shastron Ki Asangat Batein

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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[2 ऋ ऋ $. ब जन श्रास्त्रा को असरत घात ७ सूर्योदय से मिठाकर रेंचाना होंगे और उसी घड़ी को पश्चिम की तरफ करीव १०४० माइल चल कर सूर्योदय पर देखगे तो पूरा ६० मिनर का अन्तर मिरेगा । यानि जो सूर्योदय कलकत्ते भे उस घड़ी मे ६ वजे हा था वह इतनी दूर ८ १०४० माइक > _ पश्चिम आ जने पर उसी घड़ी मे ७ वजे होगा! इस प्रकार यह प्रत्यक्ष साबित हो जाता हे कि एक मिनट में करीब १७ माइल की रफ्तार हुई। अब आप विचार सकते हैं. कि एक मिनट में १७ माइछ की गति और ४४२०४८ माइल की गति में कितना बड़ा अन्तर है ! जेन शाख ( भगवती सूत्र ) मे टिखा दै कि ककं संकान्त में सूर्यं उदय होते वक्त ४७२६३६१ योजन की दरी से दृष्टिगोचर होता हैं। यानि करीव १८६०५२३७७ ( अठारह करोड़ नव्वे छाल तिरेपन हजार तीन सौ सतहत्तर ) माइ की दूरी से। मगर हम देख यह रहे है कि १०० मादक की दूरी पर जो सूर्य उदय हो गया दै, वह यहां यरीब ६ मिनट वाद्‌ हमे दिखाई पड़ेगा । यहां पर इस बात्त को न भूखे कि जेन शाखो मे प्रथ्वी को चपटी (समतल) साना है। विचारना यदह है. कि १८६०५३३५७ माइछ की दूरी से दृष्टिगोचर होने वाला सूयं फिर सौ-दो-सौ साइठ की दूरी पर दी छिप कहां जाता हे? अगर हम भूमि को गोठ मान कर गोछाई की आड़ का वदना कर लते तो भी कास बन सकता था सगर हमने तो इस युक्ति को पढद़िले से दी छुल्द्दाड़ी मार दी ।




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