अंतराल | Antraal

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Antraal by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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वह विना और कुछ कहे कूदकर -तारों को पार कर गंग्रा। उधर में हाय बढ़ाकर बोला, 'मैं मदद करूं ?”' 'नहीं, मैं पार कर लूंगी । श्यामा ने एक वार कोशिश की कि साड़ी को किसी तरह संभालकर तारों के.ऊपर से लांघ आए, पर तार इतने नीचे नहीं थे । दूसरी वार की कोशिश में वह साड़ी को छोड़ती. हुई संकोच के सं।थ पीछे हट गई । उछलना चाहते ही उसकी टांगें जांघों के ऊपरी “हिस्ते तक पेटीकोट से वाहर उघड़ आई थीं । '. वह उसकी कोशिश पर हंसने जा रहा था, जब यह वाक्य सुनकर उसकी हंसी गले में रह गई; 'तुम चलो न आगे, खड़े क्यों हो वहां ?” इसमें जहां एक झिड़की थी, वहां एक निकटता का दावा भी था। तो क्या को लगा था कि वह उसे उस उपहासास्पद स्थिति में देखने के लिए जान-वूझकर वहां खड़ा रहा था ? अगर ऐसा था, तो उसने पहले :ही क्यों नहीं उससे आगे. चलने को कह दिया था ? गौर असावधानी के उम एक क्षण में उसने श्यामा को जितना देखा, क्या वह उसी के स्कारण था कि उसके कान गरम हो उठ थे और कृनपरथियां अन्दर से भावाज कंरने लगी थीं ? घ्यामा की भांखों में कुछ ऐसा था, शिकायत से बढ़कर, कि वह चुपचाप मूंह मोड़कर खेतों की पगडंडी पर आगे “चलने लगा। मगर चलते हुए भी वह जैसे पीठ से सब-कुछ देख रहा था कि फिर उसी तरह श्यामा ने तारों पर से उछलने की एक और -कोशिश की है, कि इस बार भी अपनी कोशिश में वह सफल नहीं हो सकी, कि तारों. के उस तरफ अब वह असहाय भाव से खड़ी उसे देख रही है, सोच रही है कि.उसे आवाज देकर रोक ले या नहीं । कुछ देर त रह चलते रहने के वाद उसे लगने लगा कि श्यामा भव तक उस तरफ खड़ी नहीं रही, पार करने की कोशिश में उसकी साड़ी तारों में गयी हैं, वरना वह भाहिस्ता चल रहा था, उसे देखते हुए कोई कारण नहीं था कि वह भव तक उसके वरावर न पहुंच जाती । “मगर रुका वह फिर भी नहीं, न हो उसने पीछे मुड़कर देखा ही । देखा जब पीछे से श्यामा की आवाज सुनायी दी, सुनो !' वह भावाजःश्यामा की परिचित आवाज से काफी अलग ओर वारीक भी । उसने देखा कि श्यामा तारों को पार कर आई है, पर इस तरफ आकर जमीन पर बैठी न जाने क्या ढूंढ़ने या ठीक करने की कोशिश कर रही है । दर क्या हुआ ?' वह उसकी तरफ लौट पड़ा । मैं समझती हूं भव हमें लोट चलना चाहिए वेद




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