राजस्थान के प्रेमाख्यान : परम्परा और प्रगति | Rajasthan Ke Premakhyan Parampara Aur Pragati

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Rajasthan Ke Premakhyan Parampara Aur Pragati by रामगोपाल गोयल - Ramgopal Goyal

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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` वैदनौयता, काम २६८, सौन्दर्यं २७०, प्रेमी-प्रेमिका की सामीप्य कामना २७१, . अनुभूतिनमुलक भानन्द की प्राप्ति २७२, प्र मत्व्‌ की प्रमुख कोटियाँ--शारीरिक अथवा मासल प्रम मानसिक प्रम, कामशृन्य-प्रंम २७४, प्रेम तत्व का निरूपण २७४, शारीरिक अथवा सासल प्रेम के विभिन्न स्तर २७५, मानसिक प्रम २७८, स्वच्छद-पं म-व्यजना २७९, स्वच्छद प्रम व्यजनाके विविध रूप २८१, विषम-प्रेम व्यजना २८२, सयोगात्मक प्रम २८३, सामी प्रम व्यजना २८४ प्रपुरुषसे प्र म अथवा परकोय- प्रम २८४ गरिका प्रम २८८, दाम्पत्यप्रम २८६ दाम्पत्य प्रम की विविध प्रणाल्यां २८६, कमशून्य भाध्यात्मिके अथवा दिव्य-प्रम-ग्यंजनां २९३, राजस्थानी प्र माख्यानों से प्रेम और सौन्दयं २९६, ~ मध्याय ५ राजस्थानी प्रमास्यानों के पाञ्च पात्रोका वर्गीकरणं ३०४, कथा मे अलौकिक पाच्नोकी सृष्टिका प्रयोजन ३०६, अलौकिक दिंव्य पात्र ३०६ शकर-पावेती ३०६, देवी ३०७, देवता ३०८, इन्द्र ३०९, यक्ष ३२०६, किन्नर ३०६, गधवे ३१०, विद्याधर भौर विद्याधरिया ३१०, अप्सराये ३१०, अन्य देव पात्रं ३११, कामदेव ३१२, नागक्रुमार ३१२, अदित्य पात्र * दानव और राक्षस ३१२, भूत-प्रत ३१३, बेताल ३१३, बावन वीर ३१४, व्यंतरी सिकोत्तरी एव खेस्वी ३१४, मानवेतर पात्र ३१५, पथु-पात्र: वन्य पशु २१५, सामान्य सहायक पु ३१७, मानवगुश वाले पशु ३१९, धर्मगाथा के पद ३२०, जादुई पशु . रे२१, जल्चर ३२१, कीट-पतग ३२२, पक्षीपात्र ३२४, प्रकृति के पात्र ३२८, देवी-दक्ति वाले मानव-पात्र ३२८, मानव-पात्र ३२६, 'पुरुष-पात्र ३३०, नायको की सामान्य चारिन्रिक विशेषताये ३३०, प्रतिनायक ३३७, प्रत्तिनायक पात्रो की चारित्रिक विशेषत्ताये ` अमर सूमरा ३३८, सार्थवाह पुष्पदत ३३८, सिद्धराज जोगी ३३८, रुद्रदत्त पुरोहित ३३६, सम्‌द्रगुप्त ३३६, चण्ड प्रयोत्त ३३६, बादशाद्‌ अलाउदीन ३४०, सहायक मित्र तथा स्वामी सक्त सेवक : मंत्री मनकेसर ३४१, रतनसार ३४१, गोरा - बादर ३४२. हसन खवास ३४३, राजा विक्रमादित्य ३४३, अन्य पुरुष-पात्र ३४४, स्त्री-पात्र ३४४, नायिकाभो की सामान्य




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