आर्यावर्त | Aaryavart
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
6 MB
कुल पष्ठ :
216
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
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कौन था समय जो खड़ा दो एक क्षण भी
सस्मुख तम्हारे घोर चजाघात चाण के
सदाकवि सदावीर की मति दी महावीर प्थ्वीराज के साथ ही मद्दामत्यु का भी यों
श्रालिंगन करता है :--
चमक उरी दो क्षणदाएँ क्षण भर में,
नीचे गिरे दोनों वीर कटकर साथ ही ।
कह आये हैं कि कवि ने महावीर ही के रूप में केवल नहीं, महाश्रार्य के रूप में भी उसे
सिचित किया है। श्रावितः केश्चार्यौ कोश्रपने श्रार्य होने का जितना गौरव रै उश्से कीं
श्रधिक मद्ाकवि को है । वह् कदता दै --
भर्ये--ं हत्ताश्च नीं हा भौर अंत तक
जूझ गा--फरूंगा प्रतिपाल जायं-धर्म का ।
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उदय हुआ है रवि दिव्य राप्ट्रघर्म का
साज राष्ट्रीयता ही श्रेष्ठ भार्य-धर्म है ।
दं रौर शोक की साम्यावस्था मे वर्तमान कवि चन्द् चिन्ता की उत्ताल तरल तरंगों
सं तडपता महामाया से श्रनुनय-विनय करता है --
साष्ट्रयमें पूरा हुआ भव क्षार्य-धर्म मैं
पान करूँगा--मुझे सत्य का प्रकाश दो)
उचित यही है सुख सपशर भपना
प्रिय सायंभूमि को, में खोजूँ सना को ।
कवि चन्द को इस बाते का श्रभिमान है कि श्रार्य कभी बन्दी होते दी नहीं] यदतो दैव
दुविपाक है । ।
प्रथ्वीराल पद से भले ही सम्राट हॉ.
किन्तु जाति से है 'आाय॑” भौर किसी काल में
साय नहीं बंदी बने-केसी देव-लीला है ।
वह एक भी बदनीय झार्य का बंदी बना रहना राष्ट्र का श्रपमान समकता है और
कहता है :~~
आज एक श्रेष्ठ आार्य बंदी हैं बना हुआ
कायर अनार्यो के घृणित कारागार सं)
यदद तो समस्त राष्ट्र का ही अपमान है ।
वट इस कलक-फालिमा कौ घो देना चादता है 1 बह वेदौ की मी मन.कामना फो सममता
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