मौसेरे भाई | Mousere Bhai
श्रेणी : कहानियाँ / Stories
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
7 MB
कुल पष्ठ :
168
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about श्रीयुत कन्तानाथ पाण्डेय - Shriyut Kantanath Pandey
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)[ १९]
समय आकर यह प्रश्न करना था ! आदमी को चाहिए कि जब''
किसोको की जाता देखे तो व्यथं भ उससे खोद-विनोद नं
करे ”” यह कहकर मन-ही-मन बढ़बड़ाते हुए निकसे कि कहाँ के
साइत से निकले, कि एक तो काना ऊपर से तेली '्मादमी घर से
बाहर पैर निकालते दी दृष्टिगोचर हा, वे आराग वद् ।
मुशीजी, बात यह थी कि ससुराल जा रहे श्रे ! अपने साले
की लड़की के विवाद में भाग लेने के लिए। लकी के विवाह
के साथ ही बड़के का जनेउऊ सी था । सुंशीजी की घरवाली एक
सप्ताह पूवे हो अपने मेंके पहुँच चुको थीं । मुंशीजी कुछ लेन-
देन, हिसाब-किताब के कारण उस समय न जा सके थे । यद्यपि
अभी विवाह में तीन-चार दिन को देर थी फिर भी मुंशीजी के
ससुराल का मामला होने के नाते शोघ्रता करनी पड़ी । विचार
तो श्राज सन्ध्या को ठण्डे-ठण्डे प्रस्थान करने को था पर उस
समय भद्रा थी, इसलिए दिन में तड़के ही निकल पडे। १५
कोस जमीन ते करनी थी । गर्मी के दिन थे । कुछ खिलवाड़ थोड़े
हीथा! भद्रा के सय से दोपहर की धूप सह लेने को तैयार हुए !
पर काने साव तेली के दशन से उन्हें यह तो निश्चय हो ही
गया कि बिदाई में एक जोड़ी बेल मिलना असस्भव नहीं तो
कटिन अवश्य ही है । |
लगभग २,२॥ मील तक चले जाने के बाद मुंशीजी को यदह
स्परण हुआ कि वे टीका में देने के लिए अपने जेब में रुपयों
का बदुवा ( थैली ) रखना भूल गये। उसे वे रसोईघर के डॉड
पर ही छोड़ आये है । यदि किसी ने देख लिया होगा तब तो
वह् क्यों मिलते लगा । १४५) रु० तो गये हो समसको ! देखा न !
काने साव-तेली के द्वार पर उन्हें जो आशंका हुई थी, वह इस'
प्रकार :सत्य प्रमाणित हुई !
मुंशीजी को , पुनः घर लौटना पड़ा | ,विना टीके का रुपया
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