कुछ शब्द कुछ रेखाएं | Kuchh Shabda : Kuchh Rekhayen
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
6 MB
कुल पष्ठ :
174
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)किरणों का जादूगर
२९ मई १९४५७ 1 वगलौर के सान्ध्य आकाश मे इ्यामल मेघ
धिर आए हँ। धरूमते-घुमते सहसा हमारे मतियेय धनजीभाई बोल
उठते ह, “रमन इन्स्टीच्यूट देखोगे ?”
ओर उत्तर की प्रतीक्षा किये विना, गाडी को एक विद्याल और
भव्य भवन के अहाते की ओर मोड देते है। दवार पर लिखा है-- “यह्
आम रास्ता नही है । विना आज्ञा प्रवेश वर्जित है ।” मै हठात उस ओर
सकेत करता हु तो घनजीभाई कहते है, “यह तौ विदेशियो के लिए
लिखा है । इन्स्टीच्यूट हमारी है ! हमे कौन रोक सकता है ? “
और बरामदे के पास गाडी रोककर वहु चपरासीको पुकारते हैं,
“रमन साहब हैं ? उनको बोलो कि हम आये है ।”
हम कई व्यक्ति है । श्री यशपाल जैन, उनकी पत्नी आदशं कुमारी,
पुत्री अन्तदा, पुत्र सुधीर, आतिथेय घनजी भाई और मैं । कुछ कहू कि
इससे पूर्व ही देखता हू कि अन्दर से भाकर एक व्यक्ति तेजी से अग्रेजी
मे कह रहा है, “मैं जानता हु, तुम बिना आज्ञा अन्दर आये हो, पर
कोई बात नहीं । किसीसे कहना मत । मेरे पास पन्द्रह मिनट है। ””
हम लोग सम्हलें कि वह तीन्न गति से आगे बढ जाते है । हतप्रभ-
विसूढ हम विश्वास ही नही कर पाते कि यही नोबुल पुरस्कार प्राप्त,
प्रकाश व नाद-विज्ञान के विरोपन्न, विकश्व-परसिद्ध वंज्ञानिक, सर चन्द्रशेखर
वैकटरमन है 1 कोट, पतलून, जूता, दक्षिणी पगडी, नाक कुछ लम्बी,
वाई ओर का दात टूटा हुआ । वाह और गले पर से कोट भी फटा
हुआ । यह् है रमन । यह् व्यपित्त्व है इनका ।
विचार तीत्र गति से उमडते-वुमडते हँ । उतनी ही तीव्र गति से
वे बोलते चले जति है । सहसा गम्भीर होकर वह मेरी ओर मुड आते
है और पूछते हैं, जानते हो, मेरा मतलब क्या है ?
मैं अचकचाकर कहता हु, “जी जी ।”
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