अभागे दम्पति | Abhaage Dampti

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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अभागे दम्पति ७ यहाँ तक कि अपनी भूख-प्यास को मौ प्रकट नदीं कर सकती | पुरुष के हाय मे चिका दुआ उसका वह जीवन { कितना दयनीय है) कितना करणा पूर्ण है | यदि नारी अपने इछ द्थ्नीय जीवन का अन्त करने के छिये कमर कस ले तो आश्चर्य की बात क्या £ आज मेरे दृदय में जो तूफान उठ रहा है सरला, वह समाज के इसी अत्याचार का प्रतिफल है । आखिर कहाँ तक बिताऊँ दयनीय जीवन; और कहाँ तक झेलू' आपदाएं ! समाज ने अत्याचारों के दंश मार मार कर यह सोचने के लिये विवश कर दिया है सरला कि काठ; में कुमारी दोती ! ^ तुम्हें आश्चर्य होता होगा सरला, पर सचमुच में आज यह सोच रही हूँ वहन; कि यदि मैं कुमारी होती ! मै जानती हूँ कि समाज मेरे उस जीवन को अपने कुत्सित भावनाओं के बाण से जर्जर बना देता; पर उस समय मै स्वाधीन होती । मेरा हृदय अपना हृदय होता, मेरा प्राण अपना प्राण होता ! पति के रूप में आज जो पुरुप-शक्ति मेरे जीवन के साथ खेल कर रही है, मे उस समय उससे सुक्त दोती । मैं मानती हूँ कि उस जीवन में मुझे परिश्रम करने पढ़ते, जीवन-निर्वाह के लिये अव- रम्ब टे ने पते, किन्तु पीठ पर स्वेच्छाचारिता का कोडा तो न वर- सता प्रकारश्च में रहती, वायु मे टदरूती, ओर पुरषो ही की भत्ति अपने जीवन के आवश्यके काम करती । आखिर युरोप ओर अमेरिका की अनेक स्तर्यो भी तो इखी प्रकार का अपना जीवन चिता रही ₹ । कदाचित्‌ उन यनो ने दाम्यत्य-जीवन के पीडक परिणाम पर पहुँचने के पश्चात्‌ ही विवाह न करने का दृद निश्चय किया ई । जय वे अपने जीवन-मार्ग पर सुख-शान्ति के साथ चली जा रही हैं, तब मुझे ही क्यो कठिनाइयों का




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