प्रेम योग | Prem Yog

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Prem Yog  by स्वामी विवेकानंद - Swami Vivekanand

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about स्वामी विवेकानंद - Swami Vivekanand

Add Infomation AboutSwami Vivekanand

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
॥ श्रीयणेक्ञायनम पीर = _ ५, ममयम प्रथम अध्याय | कुक साधनाः . - 30000 भक्तियोग की सर्वोत्तम परिभाषा संभवतः भक्त भब्हाद्‌ द्वारा दौ इ निन्ल परिभाषा दी हैः- ` या. श्रीतिर विवेकानां विपयेप्वनपायिनी | लामदुस्मरतः सा में हृदयान्मापसपूतु ॥ ~ विष्णु पुराण १-२०-१९ ५ हे ईण्यर ! अज्ञानी जनौ को ईन्द्रियोके भोगके नागवान पदार्थों पर जैसी गाढ़ी प्रीति रहती दहै उसी भकार की प्रीति हमारी तुभ में हो और तेरा रुमरण करते झुए: हमारे हृदय से बद्द खुख कभी दूर न होवे ” हम देखते हैं इन्द्रियमोग के पदार्थों से बढ़कर ^ और किसी बस्तु को न जानने वाले लाग इन पदार्थों




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now