कथा कुञ्ज | Katha Kunj

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Katha Kunj by महाराज सिंह शर्मा - Maharaj Singh Sharma

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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कथा कु (1 ही रोनी जितनी खुन्दरी थी उतनी दी घिडुपी थी राजा उसके मो में पते हुये थे झपनी बुद्धिमान सेसनीनेपटरानीक्रा पद प्रात्त क९ 1लया । दुभाग्य से देश में फिर घकाल पड़ो प्रजा की इच्छाउसार राज्ञा को यहा करने बे लिये चाध्य होना पड़ा । बिना ध्र्धाद्धिनी के यन्न ग पटरानीनेथनमे साय बैठने टी जिह कौ जो उचित उने रे राज्ञा ने पूरा प्रयत्त किदा कि यज्ञ कर्ता दूद्ध घ्राह्मए चुलाये या एने यज कर्ता दइसरी लद यल करते गये हये दे ' इसलिये चाध्य होकर युदय यन्न कतांन्नों को ही घुलाना पड़ी राजा को व्यास जी की सच बातें याद थी पक दिन यज्ञ करते करते ष्स्क युदेक्त यञ्च क्ता थजा रानाका दर्वकर हंस पड़ा डे पः द्म क्रोध आगया क्रोध मै मनुष्य ना जान लप्तदो जाता है वह कतव्य - छ्रकतेव्य लो समभ नदीं सकता क्रोधवेश्ठ मे साजा ने उख लड़के का शिर कार दिया । प्राचीन समय सें सत्य दल्ड नहीं था सदधष्य क मारने बलि को तकत की खोपडी गले में डालकर वारह वपं तक्त जंगतों मे रना परता थः उसी के न्नुसार राशा वारह वषो तकत जङ्खलो मे रहे न्नौर कष्ट भोगा 1 प्यक दिन भरे धीर उनने पूछा कहो राजन च्या होनद्यार - टर खकती दै । राजञा ट्ञ्छित दुता प्रीर दप र्हा 1 दोनदार् कभी नहीं टलती 1 तव दीं तो चेभ्दरल्तेन करने पर भी सहा-भयंकर नाशकारी, खंखा९ व्यापी महायुद स्वरूप उसक्ते परिणामों को हम सच भोग रहे हैं । ~~ कं (४) ईश्वर लीला की विचित्रता सुन: बहस मन दि 1: & गवानने पक दृत को पक श्नीका जीर निकालने का हरम दिया शशं जव दून स्वी के पास पटुंचा तो च्या देखना दै कि तीन वच्दे पाचि न साल से बम उन्न के खेश रहे है पिता उनका कल मर उक्ता था मन्ता प्लेग दे चुस्ार म वेदो पड़ी है. दो पांच सात दिन के दोनों स्तनों को पो रहे हैं । दूवनें मालूस किया 4 कि षद तीन वच्चे भी उ दी स्त्री के है . उसने बिच रा कि ईश्वर कता निव्यी है यदि यह माता मर जावेगी तो इन वच्चो को कौन पालेगा ? यह लोच कर चिना धान्मा निकाले बह इत ईइचर के सामने चला गया । भगंघान के पूछने पर कि द्या बह अव ले श्राय! तो उसने ऊपर का कारण सुनाकर कटा कि सुभा वह निद्यता का काम नहीं हो सकता इस पर दूत को गिरप्त्तार करने का ह्म :चया कि दूत का काम हुक्म - को तामील करना है न कि उसपे तक घितकं करने का । दूत को भेजा गया घह फौरन




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