कांग्रेस का इतिहास भाग - 3 | Kongres Ka Itihas Bhag - 3

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Kongres Ka Itihas Bhag - 3 by पट्टाभि सीतारामय्या - Pattabhi Sitaramayya

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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‡ १३ 1 (॥ इद । संघष का कारण स्पष्ट था । सविनय-श्रवन्ञा-घ्दोल्लन के जिए वातावरण तैयार था--नो देश के क्षदने श्रौर सासपूवंक लदने के किए एकमाश्न मार्गं था। जिस प्रकार स्वशासन की योग्यता की कक्षौटी यष्ट है फि जनता को स्वशासन प्रदान कर दिया जाय, उसी प्रफार संघर्षं के लिए योग्यता की कसौटी यद्दी है कि देश को संघषः करने दिया जाय। क्या इंग्लेगढ १ श्रगस्त, १६१७ या ३ सितम्बर १४२३४ को लड़ाई के लिए तेयार था ? जनता जब युद्ध में लग जाती है तो उसे सीख नेती दै। दिंसा घौर अर्दिसा दोनों दी प्रकार की लड़ाइयों मे यक बात सच हे । सवाल्त सिर्फ़ उसकी माप-तोल का रद जाता दै कि वह व्यक्तिगत दो था सामूहिक । पहले की परीक्षा दो घुकी है श्रौर 'क्रिप्स-मिशन' के समय उसका झाशिक परिणाम भी देखने में झाया है । दूसरे ने सारी दुनिया को प्रबल वेग से दिज्ञा दिया जिसके फलस्वरूप मार्च १६४६ में दिन्दुस्तान में ब्रिटेन से 'मन्त्रिमण्डल मिशन' श्ाया । द्दे इस ऐतिहासिक काल का घर्णन इस पुस्तक में संक्षिप्त रूप में किया गया है । काँग्रेस करीब ३३ मीने जेल में रही श्र न वत्त विना किसी प्रकार की द्वानि में पढ़े बदिक इज़्ज़त के साथ वाटर श्राह । फिर भी इस थोड़े से घन्तर्छत सें कितनी ही घटनाएँ गुज़र खुकीं । दम एक ऐसे जमाने में रदते हैं जब सदियों की तरक्की सघन धोकर दशाब्दियों से श्र दशाब्दियों की बरसों में झा जाती है । कांग्रेस की गिरफ्तारी से व्यापक इलचल फेक गई । पुरानी और नह दोनों दी दुनिया के लोगों ने पूछा कि क्या हिन्दुस्तान को लड़ाई में घसीटने के पहले उससे पूछ लिया गया था, श्रौर यदद कि क्या विटिश-सरकार हिन्दुस्तान टी जनता के वरे मे जती होने का दावा करती है वेसी सचमुच ६, चौर श्रगर ऐसा दै तो फिर दिन्दुस्तानियों ने लड़ाई में भाग लेने के विरुद्ध इतना शोर क्यों मचाया ? यद्द प्रश्न भी हुआ कि झगर मुस्लिम ज्लीग शौर कॉँप्रेस दोनों टी ने युद्ध की कोशिशों में मदद नद्दीं की, तो क्या जो रँगरूट फौज में भर्ती हुए हैं वे साम्राज्य के भक्त के रूप में थ्ाये हैं या इसे खेन्न समस कर इसमें लाइसी पुरुषों की तरद शामिल दो गये हैं? श्रथवा वे जषा के कठिन दिनों में गुजारे के लिए पेशेवर सैनिक सिपाही के रूप में भर्ती हुए हैं ? एक शब्द में, झाजादी के ज़िए हिन्दुस्तान का मामला इस प्रकार व्यापक रूप में विज्ञापित हु कि दूसरा मद्दायुद्ध शुरू दोने के पदले ऐसा कभी नहीं हुआ था । ब्रिटेन में जो कोग युद्ध- सत्र में जाने से रद्द गये थे उनकी ाघाज्न झभी तक क्षीण तो थी, पर उसमें समानता श्र स्याय फो पुट थी इसक्षिप उसमें काफ़ी श्नोर था । ष युद्ध फी घोर ध्वनि श्र धूक्षि में भी सुनाई पणी । धीरे-धीरे यष्ठ सरार संप्राह्दी धर सर्वशोषक वन गई । अमेरिका में कोग दो दिस्सों में बैंट गये थे--एक वो राष्ट्रपति रूजवेरट के साथ यह विचार रखते थे कि हिन्दुस्तान घिटेन का निजी सामक्षा है, श्र एक दूसरा छोटा दुन्च इस विचार का था कि दिन्दुस्तान की शाजादी जैसी विशा समस्या पर लदा क दिनों में विचार ष्ठं हषे सकता, उसे कादाई खत्म दोने तक रुकना 'चादिए। तीसरा श्र सबसे बढ़ा दुल जनता के उन सीधे-सादे लोगों का था जो चाहते ये कि दिन्दुस्तान को इसी वक्त '्राजादी मिल जानी चाहिए । जव हिन्दुस्तान ने अमेरिकन और चीनी राष्ट्रों से श्रपीक्ष की तो व. इस यात को जानता था कि ब्रिटेन यष् दावा करेगा कि दिन्दुस्तान तो उका घरेलू मामला है भौर श्रन्य राट का हिन्दुस्तान या च्रिटेन के किसी भी उपनिवेश या श्चधीनस्थ देश से कोई सम्बन्ध नीं है । तो भी हिन्दुस्ताष श्रौर कोपने दस वात से अवगत ये कि विटेन सम्य-राष्ट्रों के नच्षघ्रमणडन्त से झकम




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