मौनपालन | Mounpalan

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Mounpalan by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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मौन, मीनपासन, मीनपाल भर मैवे वृको प्‌ सुने मे यद ण्छ दी चत्ता लगाती टै । भारतीय व परिचमी सौनकीभोतिन तो कद्‌ स्यान दी इससे पिय होना है, श्रौर न उनकी भोति यद कई समानान्तर छत्ते दी लगाती हैँ ! नाप में भी यदद बड़ी दोदी है । इसका इक मी श्रधिक लम्बा व. श्स्पस्त विपेला होता है (चिन २) 1 श्रगर किसी मनुष्य को इसके बई डक एव बार दी लग जायें हो उमकी मृत्यु श्रचश्यम्भादी दो जाती दै । यदद गरम स्थाना मं श्रधिवाश रहती है । शहद मी यह श्रत्पधिक जमा करती है । इसके एक छुत्त से एक ही चार में मन मन भर तक शहद मिल जाता दे । इसके पालने के प्रयल किये जा रहे हैं । लेस्नि सफलता श्रभी तक नददीं मिल सकी है । डर ४ ऐपिस फ्लोरिया (पोतीड्ञा)”--यह शऋुत ही घारी मौन होती है । शने स्यानं म, श्रधिकारत भाड़ी या मकान वी छता पर यह श्रपना चत्ता लगाती है । इसका भी एक शी चत्ता होता है, वहं भी बहुत दोग । इसके सत्ते से एक बार में २, हे पीन्ड तक शहर निकल दाता है । इसका डक छोटा व बम विपेला होता है । ५. मेलीपोना (डम्भर)- यद मौन ग्रमेषिि मे प्रधिक पाई जाती है । हा यद पालो भी जने लगी दै। दमारे देश मे भी यह पाई जाती है । यह इक वी प्रयोग नहीं करती है, इसीलिये इसे विना डफ की मोन कद कर भी पुकारा जाता है । मौनपालन मुर्गा पालन, गो पालन की भाति श्रान मौनपालन भी एक धधा हौ गया है । पाश्चात्य विद्वानों ने ्पने लगातार के परिथम व श्रवेण से मीनो की प्रसेकं शद व श्रावश्यकताय्रा का पता लगा कर ऐसी ऐसी विधिया दुढ निकाली हैं कि अपन सदयोग से हम मोन को ग्रधिक स श्रपिकःव्याराप देकर उनसे श्रधिक से श्रथिकं शद प्रात कर सकते हैं । पश्चिम में इस भद्दे से धेने एक व्यवसाय का ल्पे लिया दै । वे सफलता इम व्यवसाय मे उन्नति भी कर रहे है | वहा इस समय श्नेका बड़े बड़े मौनालय स्थापित दो चुके हैं श्र नये नये दो रहे है । ये लाखों रुपया प्रतिवर्ष इस घने से कमा




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