निहारिकाएं | Niharikaen

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Niharikaen by गोरख प्रसाद - Gorakh Prasad

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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* ज्योतिपियों के यंत्र ९ तारे बहुत से हे और उनमें कई ऐसे भी हें, जिनकी दूरी और निजी चमक ज्ञात है । इन तारों के अध्ययन से पता चला हूँ कि चमक घटने-वढनें के आदतें काल तथा वास्तवित्र चमक में एक अटूट संदंघ हूं । वस हमारे छिए इतना ही पर्याप्त हं ; इमते नीहारिकायो की दूतौ जान छठी जा सक्ती हं । कारण यदे हूं कि अधिकांश नीहारिकाओं में सेफीइड तारे भी है । वहुत से फोटोग्राफ लेने पर मौर घनत्व नापने पर इन तारों के प्रवाश के घटने-वढने का नियम सुगमता से जाना जा सकता हैं। इस प्रकार उनके प्रकाश-परिवर्तन का आवर्त काल ठीक-ठीक ज्ञात हो जाता हूँ 1 तव आवर्तकाल से उनकी वास्तविक चमक को और वास्तविक चमक से उनकी दुरी की गणना सरलता से की जा सकतो है, चाहे तारा कितना ही फीका वयो न हो । केवछ एक धोखा हो सकता हूँ । कही कोई काली नीहारिवा यां प्रकार सोवनेवाठी यन्य गैस या धृति तो वोच में नहीं हैं, जिसके कारण तारा मंद प्रकाश का लगता हू ? इन दातों का विवेचन कर छेने पर, गौर तकों से सिद्ध कर लेने पर कि प्रकाश दोपक वीच में नही हूँ थौर हूँ तो वित्तना प्रकादा उसके कारण मिट गा है, सेफीदड तारो की दुरो वडी सुगमता से निव भाती हं । तव उन नोहारिकायों की दूरियाँ ज्ञात हो जाती हैं, जिन से वे तारे संबंधित है । इस प्रदार पता चला हैं कि बड़ा म॑गिटन- मेष लगमग ७५,००० प्रवारा-वपं कौ दूरौ पर हूँ, छोटा में गिटन-मेघ लगभग ८४,००० प्रकाशन वपं परह । छोटी दिखायी पड़ने वालो सपिल्र नौहारिवाएं इनसे छाजों गुवी अधिक दुरी पर हैं । इन दूरियों की गणना सरल है; परतु उनकी कल्पना हमारी अनुभूति के परे है । वर्णपट-गच कै त्रिपादं द्वारा देखने पर मौमवत्ती कौ रौ, या अन्य प्रकायमान वस्तु, कई रगों की दिखाई देती हं । शोध वा प्रिपादवं वहो हं जिसे शीदो कौ क्लम भी लोग बहते है; पुराने ढग की झाड़-फानूस में शोमा के लिए वहुत-मी कठमें लटकायी जाती थी । इनके तीनो पहल समतल होते हं मौर तीनों कोर एक दूसरे के ममानातर होने है । इसी प्रकार का बिपादवं, परतु कम कोण वा और वाफौ वडा, जिससे दूरदर्शक का ताल पूर्णतया ढक जाय, ताल के ऊपर लगा देने पर तारे वा फोटोग्राफ विंदु-सरोखा न आकर पट्टी के समान आता है, जिसे वर्णपट (स्पेक्ट्रम) बहने हैं और इस दर्ण पट की जाँच से दटूत-सी वातों वा पता चलता है । यदि साधारण फोटोग्राफ लेने के बदले रंगीन फोटोग्राफ लिया जाय या बर्षपट को आँख से देता जाय तो वर्णपट रंगीन दिखायी पड़ेगा । इन रंगों वा थर्य समझने के लिए तारे के प्रवाश के ददले पहले हम मोमवत्ती के प्रदाश का अध्ययत बरेंगे । मान लीजिये, रिसी प्रदध से मोमयत्ती के एक विदु से याये प्रदा को तरिादवं पर पड़ने दिया जाता है और प्रिपासवं को एर करने पर यने वर्यंपट की हम जाँच वरते है। हम देखेंगे कि वर्णपट के एक सिरे पर वंगनी रग हूं और दूसरे सिरे पर लाख रग हूँ । इन दोनों के बीच असस्य रग है, जिन्हें हम मोट हियाय से सात रगो मे विमङ्रन बर सवते हे । उनके नाम कमानुसार ये है-- बैगनी, गहरा नोला, आसमानो, हरा, पीला, नारगी, लाल । इस दणपट में दही कोई काली रेखा न दिखायों पइगी । परतु यदि हम विसी गेंस को वप्त बरक प्रकारा उत्पन्न करे मौर उसे तरिपादवं दवारा देसे तो दरगरे ही प्रगारका वरभपट हमे २




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