राम चर्चा | Raam Charcha
श्रेणी : कानून / Law
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
10.59 MB
कुल पष्ठ :
171
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
प्रेमचंद का जन्म ३१ जुलाई १८८० को वाराणसी जिले (उत्तर प्रदेश) के लमही गाँव में एक कायस्थ परिवार में हुआ था। उनकी माता का नाम आनन्दी देवी तथा पिता का नाम मुंशी अजायबराय था जो लमही में डाकमुंशी थे। प्रेमचंद की आरंभिक शिक्षा फ़ारसी में हुई। सात वर्ष की अवस्था में उनकी माता तथा चौदह वर्ष की अवस्था में उनके पिता का देहान्त हो गया जिसके कारण उनका प्रारंभिक जीवन संघर्षमय रहा। उनकी बचपन से ही पढ़ने में बहुत रुचि थी। १३ साल की उम्र में ही उन्होंने तिलिस्म-ए-होशरुबा पढ़ लिया और उन्होंने उर्दू के मशहूर रचनाकार रतननाथ 'शरसार', मिर्ज़ा हादी रुस्वा और मौलाना शरर के उपन्यासों से परिचय प्राप्त कर लिया। उनक
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)वालकांड ऊ राम-चथचों यज्ञ कर रहा हूँ किन्तु राक्षस लोग उसे थापवित्र करने की कोशिश करते हैं। वद्द यज्ञ की बेदी पर रक्त और दृडिडयाँ फेंकते हैं । आरीच और सुबाहु दो बड़े दी विद्रोही राक्षस हैं। यह सारा फ़िसाद उन्दीं लोगों का है। मुभमें झपनी तपस्या का इतना बल है कि चाहूँ तो एक शाप देकर उनकी सारी सेना को जलाकर राख कर दूँ पर यज्ञ करते समय क्रोध को रोकना पढ़ता है । इसलिए में छापके पास फ्ररियाद लेकर श्ाया हूँ । झाप राजकुमार रामचन्द्र र लक्ष्मण को मेरे साथ भेज दीजिए जिससे बह प्ेरे यज्ञ की रक्षा करें और उन राक्षसों को शिथिल कर दें । दस दिन में दमारा यज्ञ पूरा हो जायगा । राम के सिवा शर किसी से यद्द काम न होगा । राजा दशरथ बढ़ी मुश्किल में पड़ गये । राम का वियोग उन्हें एक क्षण के लिए सह्य न था । यह भय भी हुआ कि लड़के थभी थनुभवी नहीं हैं डरावने राक्षसों से भला क्या मुकाबला कर सकेंगे । डरते हुए बोले--हे पवित्र ऋषि झापकी झाज्ञा शिरोधाय है किन्तु इन झल्प- वयस्क लड़कों को राक्षसों के मुक़ाबले में भेजते मुे भय होता है । उम्हें झभी तक. युद्ध-चोत्र का अनुभव नहीं है । में स्वयं अपनी सारी सना लेकर श्ापके यज्ञ की रक्षा करने चलूगा। लड़कों को साथ भेजने के लिए मुभे विवश न कीजिये । विश्वामित्र हँसकर बोले--मद्दाराज श्राप इन लड़कों को झभी नहीं जानते । इनमें शेरों की-सी हिम्मत छोर ताकत है। मुझे पूरा विश्वास है कि ये राक्षसों को मार डालेंगे । इनकी तरफ़ से झाप निडर रदिये । इनका बाल भी बाँका न होगा । राजा दशरथ फिर कुछ श्ापत्ति करना चाहते थे मगर गुरु चशिष्ठ के समभाने पर राज़ी दो गये । शोर दोनों राजकुमारों को बुला- कर ऋषि विश्वामित्र के साथ जाने का थ्ादेश दिया । रामचन्द्र और लक्ष्मण यद्द आज्ञा पाकर दिल में बहुत खुश हुए । अपनी घीरता को दिखाने का ऐसा श्रच्छा डवसर इन्हें पदले न मिला था । दोनों ने युद्ध में जाने के कपड़े पहने दथियार स॒ज्ञाये ोर अपनी माताझों से झाशी-
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