राम बादशाह के छ: हुक्मनामे | Ram Badshah Ke Chh: Hukmname

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Ram Badshah Ke Chh: Hukmname by रामभक्त - Rambhakt

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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[. ॥- ] ड इनको वरहना तन९ देखनेके लिये . पांनीसे बाहर निकालनेकी -तकलीप्‌ देता 1 यह मख्कते फल्कते चे आवशार चादीके कमन्द ओर रस्ते मालम देते दै फ जिनको पकड़कर मरम उरुवीरेको चह ज्ञीयं। या यह हीरेकी गातवाठी कंचनियां ( चादरे' ) हैं जो सरके बंछ रफ़ंसकुनाई ज़मीन ख्िदमत चम री ह गौर मिहायत सुरीरी आवाज्ञसे रामको महिमाके गीत गाती जाती ३ ।* सच्‌ १६०० में अलछिफ़” नामंकी उदू पत्रिका जारी की गई और इसके दो तीन अंक ही निकले थे कि जढाईमें रामंते वानप्रत्थ हे छिया। उनके नई भक्तो तथा पत्री ओर पुत्रे भो उनके साथ अद्गर्को प्रस्थान किया । किन्तु थोड़े दी दिनोंमें उनकी पत्नीका स्वास्थ्य ऐसा बिगड़ी कि वह दिंवश होकर अपने घर चली आई 1 १४०१ के आदं रामने संल्यास प्रहण कर ख्या । संसारे वह कभी स्मि नहीं रदे । युवाबस्थादीसे इनकी इतति एकान्ताभ्यासकी भोर थीः अव बह पूण रीतिसे इर्त दो गये ! छु दिरनोतक तो वह सी स्थानपर रहे, फिर गड्डोत्री, बद्रीनाथ आदि पवित्र स्थानोंकी याजा करते हुए वह ल्गमग साकमरके वाद्‌ छोटे और सारतके नगरोंमें घूम घूम- कर ठोगोंको अपनी असतवाणीसे ताथः करने छगे । स्वामी रामके उपदेशोंमिं ऐसा बिह्लकारी 'आकर्षण होता था क्कि जिसने एक बार भी उनके सुननेका सौभाग्य प्राप्त किया है, वह उस रसको जीवन पर्य्यस्त नहों भूढ सकता । मथुरामें धम्मेमददोर्सवके सवंसंरपर स्वामीजीका व्याख्यान भी होनेवाला था । ठोग दिनमेर उपदेश सुनते सुनते थकते गये थे । यहां तक कि उत्सबरका समय -उ्यतीत हो गया । अन्तमं स्वामीजी मण्डपमे आये, पर व्याख्यान च देकर वेड यह कहा कि यदि भाप लोगोको रामको वेति सुनी हों नञ सस्वरं ३नाचती इद ।




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