ग्राम - देवता | Gram Devta

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Gram Devta by रामदेव शुक्ल - Ramdev Shukl

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about रामदेव शुक्ल - Ramdev Shukl

Add Infomation AboutRamdev Shukl

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
ग्राम-देवतां -: १५ 'दोन्तीन चरस वाद जदा-जट चढ़ाथे लोटा तो पटोस के गाँव के चावा जी उसकी वोवी के साथ परदेश जा चुके थे । तब से गिरशिटया गाँव फे सिवान पर पीपल के नीचे रहता है । जून-छुजून गाव में लाफर दो फौर भिम के यहाँ वेठ कर या लेता टै और नारद जी का पेथा करता है । सब जगह गिरंगिट भगत मौजूद हैं । धादी-व्याहू, मरन-जीयन से लेकर पंचाएत- त्यौहार तक । गाँव में सुखा पढ़े तो गिरगिट भगत मुद्दा होकर घमते हैं । किसान शुनकी अकाल-खबी से चिड्ते हैं तो भगत कहते हैं 'हम बोला है भगवान से। सत्त वरान पानी । गाँव में दया-घरम नहीं रह गया । और वेईमानी करो । भोर चोरी करो । बौर चावा लोगों गो अपने घर में सलावें चमा- इन लोग और तीटी पिलावें । पानी नहीं वरसेगा । हम वासा जय पानी चरसता है, और कई-फरई दिन तक लगातार चरसता ट तो गिरगिट भगत कहते घमते हैं, 'हम बोला है मेघ राजा से और प्रते करा | अत्याचार हो रहा है है। चमार खटिया से नहीं उतरता है, बाबा फो देय कर | वावा चमार के घर में पीछे से घुसता है । मुसलमान को अण्टा नहीं मिलता 1 चाचा अण्डा खाता है । दूध में साला पानी मिलाता है राधन में कंकड़ । अब पानी नहीं खुलेगा 1' पंचाइत में सन्नाटा है। काशी का हाथ जोड़ते-जोठ़ते चुरा हाल है। मृटवा कभी रोता गी रातै-रोते वट्फा को, चनी अपने अभाग हो गाली देता है । कहना है. 'हे भगवान नियाव करो । पायी का प 'पर हमको उत्टा दॉड़ि लगाते हैं । दे पंचायत नाहीं रावण का दरदा मुंडवा की माई, जिसको कभी किसी ने घर के बाहर नहीं देखा, पचां के सामने आँचल फीलाये भीय मांग रही है, 'पंपों, नियाथ करो 1 मुंदवा के वाप के शिर पट्टिने ही फार्जा हैं । बैल यलि जाई तो हमार गाँव छूटि जाई । सरकार मार्ट-वाप । दोहाई दो | उधर चमारों में एएदंग सच गया है । गोधन सार सो हटा को सघा घुन्ध गाली दिये जा रहे हैं 'द सार अपने सुसर साई । है तो ठोक । साहू फे घरम का विंगाड़ी । बढ़का को इसने गाए सुअर खिलाया । थिररस ट्न त ट ।




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now