धर्म | Dharm

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Dharm by दामोदर सातवलेकर - Damodar Satavlekar

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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भारतीय संस्कतिका स्वरूप कश्यपकी पृथ्वी ' क्यप की पएथिवी ` दस प्रकार मान्यता थी । भर्थात्‌ समस्त परथिवी क्यप ऋषिकीं है । क्रिसी भी राजा- के छिये ऐसा नद्दीं कद्दा जाता था कि समस्त पथिवी उस- की है; किन्तु वद श्राह्ममोंकी है, यह भवइय समझा जाता था | तथ्काछीन इस प्रकारकी व्यवस्थाकी कोर विशेष ध्यान देना चाहिये । स्वयं त्राह्मण कभी भी राज्य नह्दीं करते थे; किन्तु राजा- के पुरोहित धनकर समस्त उथल पुथल वे ही किया करते थे । उस समयका पौरो हित भाजके समान केवल दृ एवं तिछॉतक ही सीमित नहीं था; भपितु राजाकी सेना, उसके शखाख्र, कोष एवं झौद्योगिक ब्यवस्थापर भी इस पुरो दवित का अधिकार रहता था । इस सम्पूर्ण व्यवस्थाकी देखरेख रखना पुर(द्वितका कतैब्य ही था | युद्ध किया जाय. अथवा न किया जाय, इसका निभय मी पुरोदित ही करिया करता था, किन्तु युद्ध रजा करताथा) दः. ड पुरोहितके कर्तव्य एषम आयुघा संदयापि जिष्णुयषामस्मि पुरोहितः । अधवे० जिनका मैं पुरोदित हूँ बनके सायुध में तीक्ष्ण रखा करता हूँ ' यद्द वाक्य एक पुरोद्दित बोछता है । इससे यह सिद्ध होता है कि पुरोदितके भभरिकार क्या थे तथा उनका लथिकार क्षेत्र कितना विशार थ ? चित्रसेन गन्धवेने भी पाण्डवॉंसे कहां था कि अच्छा पुरोहित किये बिना तुरम राभ्य नहीं मिङेगा । भतः उन्दोनि भौम्यको पुरोद्धित बनाया यह इत्तान्त इतिद्ठास -परपिंद्ध हे ¡ इस प्रकार ब्राह्मणों का भव्यन्त व्यापक कार्यक्षेत्र था। माज क्षात्रियों क्षेत्र भाविक ध्यापक हो गया है तथा अाहाणोंक। क्षेत्र संकुचित हो गया है । किन्तु यह स्थिति वैदिक काक्ें नहीं थी । उसर मारतमें ५० | ५५ राजा थे भौर डन सबके पुरो- हिव बाक्षण ही थे | इन सब जाइयणोंका विज्ञानखुत्र एक दी हुआ करता था ! युरुपरम्परा, वेद्परम्परा, विज्ञानपरस्परा शादि परम्परां षमी शराह्मणोंडी एकसी ही थीं। यही कारण था कि उस युगसें ब्राइमभोंका वजन सर्वाधिक या भार इसीलिये क्षत्रिय भी न्नाह्मणोंसे दुबकर रहा करते थे ¦ (२१७) प्रथक्षरुपसे राज्याधिकार न होनेपर भी उस युगके बाह्मणों मे लपना वजन इस प्रकार जमा रक्‍्खा था। इसीको हम हस भकार भी कह सकते हैं कि समस्त पृथ्वी पर सांस्कृतिक राञ्य ब्राह्र्णोक! था एदं क्षत्रिर्योका राज्य केवर उनको सीमाभनोंतक सीमित था । इस परिस्थितिकों हृद्यक्षम किये बिना तत्‌ कालीन इतिदाप समझें नहीं ना सकता । ब्रह्मबल एवं क्षत्रबल इन ब्रह्मणो महत्वके कारण राजा विश्रमिग्रको ^ भिग्बरुं श्षत्रियरे, ब्रह्मतेजो वरं बरं › काजोनुभव इभा था वहु उष समयकी परिस्थितिक्रे कारण दी ईभा था भौर दमील्यि वह क्षत्रियवणेका परित्याग करके बराह्मणवर्णते प्रविष्ट हाथा! ! भागे जाङ्र्‌ विश्वामित्रे जाह्मणवशर प्रसिद्धौ पाड है तथा ब्राह्मणदर्णमें उसने सलमान भी घाप्त किया है । ब्राह्मण ब्रन जानेषर ब्राहम्णोकं सांस्कृतिक काय इसने खूब जोरशोरसे जारी रखे थे । ब्राह्मणछोग यजञमागिसे वैदिकधम एवं नेदिकसस्कृति का प्रचार किया करते थे । एक समय विश्वामित्र स्यं राजा थे, अतः उनका वजन तत्काछीन क्षत्रियोंपर होना स्वाभाविक ही था | यदि इन्ई यज्ञ करना ही भपेक्षित होता तो किसी भी राजाफे राज्यसें जाका कई देते कि ' में यह करना चाहता हूँ ' और इस प्रकार उस राजासे सब प्रकार की सुविधा प्राप्त कर सकते थे; किन्तु विश्वामित्रने देसा नहीं किया । उन्होंने किसो मी भायेराजाङे राज्ये यज्ञ न रके जरह विध्मी राक्षो! राज्य था वरह जाकर यज्ञ किया विधर्म रक्षक्षो द्वारा इतरे यज्ञम यादे किसी प्रकारकी विध्नबाघा ढाढी जाती तो आयराजाओंकी सदायत्ता छेकर यद्द उसी भरुमिपर साइग यज्ञ करनेका भय किया! करता था । उस युगमें सभी न्राह्मणोंकी यही मनीषा परि- छक्षित होती है । जिस देशमें माथे राजानोंका राज्य हुआ कहता था वहीं ये छोग यज्ञ न करके जदों राक्षस छोगोंकी बस्ती दुआ करती थी वहीं जाकर अपनी पर्णकुटीर बनाया करते थे और यज्ञ किया करते थे। यदि राक्षस यन्ते बाथा डाछते तो ये छोग उन्दें कूर भौर निदैथौ ककर निन्दित करते थे |




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