ऐतिहासिक पक्ष | Etihasik Paksh

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Etihasik Paksh by उपेन्द्रनाथ अश्क - Upendranath Ashk

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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टेतिह्यसिंक प्त व्यावसायिक होते हुए भी साहित्यिक रहते है। भारतीय नाटक साहित्य में आग्रा हश्च इसके उदाहरण ह्‌ । जग्रा हश्च' ने प्रकट ही रंगसंच के लिए नाटक लिखे लेकिन अपने समकालीनों--'तालिवं, 'हसन', 'बेताब' और 'राधघेदयास कथावाचक' से वे इसलिए भिन्न हें कि जहाँ दूसरों के नाटक रंगमंच पर घड़े सफल हए, पर उनका साहित्यिक महत्वे नही कं बराबर ह, वह “आग्रा हः के उत्करप्ट नाटक रंगमंच पर सद्य सफल रहने के साथ-साथ साहित्य का महत्वपूर्ण अंग बने और उन्होंने इम्तयाजअली को अनारकली जैसा सफल साहित्यिक नाटक लिखने की प्ररणा दी, जो रंगमंच पर भी उतना ही सफल रहा ! शश्र ने हिन्दी में भी दस नारक लिखे जो बड़े लोकप्रिय हुए श्री सोमनाथ गुप्त ने अपने “हिन्दी नाटक साहित्य का इतिहासः मं आग्रा हृषः को सम्बन्ध मे लिला हं - .. हुआ की भाषा में बड़ी चवित है। साथ ही घारावाहिकता भी । उनके पात्र साघारण जीवन के होते हुए भी आदर्श की सीसा को पहुंच लाते है! पतनोन्मुखी ओर उत्थानोन्सुखी का विरोध उनके चरित्र-चित्रण की साधारण शैली हु। अपनी रंगीन लेखनी से वे ऐसी घटनाओ और चरित्रों का निर्माण करते है; जिनमें अनुभव की तीव्रता और सानवीय भावनाओं की कोमलता एवं कठोरता दोनों का समावेग हो जाता है। ऐसे दृश्यों को देखकर दर्शक मण्डली का हृदय अपने तनाव को उच्च सीमा पर पहुंच कर करुणा से विभोर हो उस्ता ह 1 प्रकट ह कि जिस रग-नाटकमं ये गुण हं वहु सहजं ही उच्चकोटि का साहित्यिक नाटक भी हये जायगा ।' ^ *.....हिन्दी साहित्य का यह दुर्भाग्य हे कि किसी ने आशा हुआ के हिन्दी नाटकों का सस्पादन करक, उनके संस्करण प्रकाशित नहीं कराये । अब भी आशा है कि आलोचक उस महान नाटककार को जिसने फ़ारसीदान होते हुए भी हिन्दी की सेवा की, उसका उचित स्थान दगे। [ १७




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