अमर क्रन्तिकारी शहीद राजनारायण मिश्रा की आत्म कथा | Amar Krantikari Shaheed Rajnarayan Mishr Ki Aatmakatha

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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(, कैद है सिल्वर वमद नदीं हा । हमरे भाई साहव मुझत्तल कर दवि गये धे सात माह वाद उन्हें फिर जगह मिली । उन्हें बहुत परेशानी उठानी पढ़ी । इस पर भी बे सुमे एक यार जेल में मिलने भी आये थे । वे रिवाल्वर वापस मांगते थे । २६ जनवरी फ मेरा ववादला सीतापुर जेल ह गया । वहां पर करई जिते फे लेण ये 1 वहुत से नवजवान भी मिले । श्रपने विचारों के युवर्ों की कभी नथी। ५० शप्रेल के मेरा चालान यदायु जेल का भेजा गया । वहं पर दमने श्रपनी कुल सजा काटी 1 १ दिसम्बर सन्‌ ४१ के मैं चूटा था। हमारे बड़े भाई सादव सदा हमारे साथ ये । हमे वीरता की शिक्षा देते रहे । हमारे भाई साहब १० नवम्बर के चे थे । हमारे सबसे वड़े भाई, जो साधु ये, पेचिश की वीमारी से नयम्बर में मर गये । उनसे छोटे वे थे जो समुयल में रहते थे। उनके साले ने एक श्रादमी को मार दिया था | ये वं ये भी नदी, किन्तु उन 2० साल की सजा हो गई । घर पर हमारे पिता जी के सिवा कोई नहीं था। पिता जी भी १९ दिसम्चर सन ४२ का भाई साहय के शोक में मरगये | सैर, मरना- जीना तो लगा ही रहता दे । हमारे घर पर येती दो हल थी थी । यहीं जीविफा का इरिया या । वह भी सव बिगड़ गया । मल वीर: भी मर गये थे नौकरी सभी भाइयों में फ्राई भी पाना नहीं व्याहता था | हमारे सामने 'ार्यिक कठिनाई 'अपिक थी | काई दुख चंदाने वाला सायी मीन या। सन्‌ २ ६० मई फा महीना या! दमार भाई मादय मे मुझे.




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