अमर क्रन्तिकारी शहीद राजनारायण मिश्रा की आत्म कथा | Amar Krantikari Shaheed Rajnarayan Mishr Ki Aatmakatha
श्रेणी : इतिहास / History, जीवनी / Biography
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
1 MB
कुल पष्ठ :
88
श्रेणी :
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)(, कैद है
सिल्वर वमद नदीं हा । हमरे भाई साहव मुझत्तल कर
दवि गये धे सात माह वाद उन्हें फिर जगह मिली । उन्हें बहुत
परेशानी उठानी पढ़ी । इस पर भी बे सुमे एक यार जेल में
मिलने भी आये थे । वे रिवाल्वर वापस मांगते थे । २६ जनवरी
फ मेरा ववादला सीतापुर जेल ह गया । वहां पर करई जिते फे
लेण ये 1 वहुत से नवजवान भी मिले । श्रपने विचारों के युवर्ों
की कभी नथी। ५० शप्रेल के मेरा चालान यदायु जेल का
भेजा गया । वहं पर दमने श्रपनी कुल सजा काटी 1 १ दिसम्बर
सन् ४१ के मैं चूटा था। हमारे बड़े भाई सादव सदा हमारे
साथ ये । हमे वीरता की शिक्षा देते रहे । हमारे भाई साहब १०
नवम्बर के चे थे । हमारे सबसे वड़े भाई, जो साधु ये, पेचिश
की वीमारी से नयम्बर में मर गये । उनसे छोटे वे थे जो समुयल
में रहते थे। उनके साले ने एक श्रादमी को मार दिया था | ये
वं ये भी नदी, किन्तु उन 2० साल की सजा हो गई । घर पर
हमारे पिता जी के सिवा कोई नहीं था। पिता जी भी १९
दिसम्चर सन ४२ का भाई साहय के शोक में मरगये | सैर, मरना-
जीना तो लगा ही रहता दे । हमारे घर पर येती दो हल थी
थी । यहीं जीविफा का इरिया या । वह भी सव बिगड़ गया । मल
वीर: भी मर गये थे नौकरी सभी भाइयों में फ्राई भी पाना नहीं
व्याहता था | हमारे सामने 'ार्यिक कठिनाई 'अपिक थी | काई
दुख चंदाने वाला सायी मीन या।
सन् २ ६० मई फा महीना या! दमार भाई मादय मे मुझे.
User Reviews
No Reviews | Add Yours...