सिद्धो की सन्धाभाषा | Sidhon Ki Sandhabhasha

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Book Image : सिद्धो की सन्धाभाषा  - Sidhon Ki Sandhabhasha

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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१० ] सिद्धों को सचाभापा उः < ऊदेव्य न की झादि स्वरों का दी्घीकरण सघामाषा म॑ बा० भाग बा० के नादि अ उधा उस्दर कभा कप क्रम अपने दाघ रूप बा तथा ऊ मे परिवत्वित हा जात हूँ । चहा वादा यह परिवतन क्तिपुरक के नियम के अनुसार होता है और बहा वहीं न्वरेत्र रूपम। च्तिपूरफ ोीकरण के नियमातुसार परियत्त॑नी पा रुन सधाभापा वी यह विनप्ठा दै कि स्द मारि पथा मध्यग स्वर के बात यदि सयुक्त व्यंजन रहन हैं, ता उनमे से एक यज लप्त हा जाना है तथा उत्तका श्ठि यू उ ५ रूप से उमा हस्व आति तथा सध्यम स्वर द घ हो जात हैं ।* शादि आं था < ग सघभिपा कौ वादिनाष्वनिनान०्यन्वान्कौबष्वान क्या दाप स्प्रै। जमे माचि < मि जानिः < अनि लाण < लय आगनि < अय झादि उ कर श दे वागचों दाहाकोग पू० १० प० है । २ दे० तगार प्प्छतल्म्‌ (षवपा ता दवस पूर ६४ तेगार ने इख प्रवृति को अपन्न ख वे केवल यादि सवेण तेक हा सामित रखा है परन्तु से घासापा के सध्य्य स्वरों मे भी दस अवतिक जदादृ्य निर्लत हैं 5 दै नास्ता नो मार दार दर १५॥। ४ देश वहों चल 3) “ देन वहो च० ४४1 ६ दे० वटो च० ८ 1




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