आध्यात्मिक - शंका समाधान | Aadhyatimik Shanka Samadhan
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
5 MB
कुल पष्ठ :
126
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand); न 29-02-94
१०८ प्रवचनसार तात्पर्य वृत्ति गाथा ८० के उत्थानिका वाक्य में कहा है कि
अथ चत्तापावारंधं...... इत्यादि सूत्रेण यदुक्तं शुद्धोपयीग। भावे $
मोहादि विनाशो न भवति, मोहादि विनाश्ञा भावे, शुद्धात्म लाभो न भ
भवति तदर्थ मेवेदानी मुपायं समलोचयति, पृ. ४९
. क्या अध्यात्म भाषा मेँ कथित *“ निज शुद्धात्म भावनाभिमुख रुप सविकल्प
स्वसवेदन ज्ञान तथा आगम भाषा में कथित अधःकरण, अपूर्वकरण ओर १
अनिवृत्तिकरण रुप परिणाम एक है ?' पु. ५० ०
११०. यह कैसे? पु. ५९
१११ दर्शन मोह कौ क्षपणा विधि विषयक करण परिणाम तथा चारित्र मोह कौ ¢
क्षपणा विधि विषयक परिणाम क्याएक ही है? पु. ५९१
११२ दर्शन मोह कौ क्षपणा कौन करता है? मिथ्यादृष्टि या उपशम सम्यग्दृष्टि? थ
पृ. ५१ ८
११३ दर्शन मोह की क्षपणा किन-किन गुणस्थानों में संभव है? पृ. ५९ &
११४. प्रवचनसार गाथा ८० कौ तात्पर्यवृत्ति मेँ किस गुणस्थानवतीं कौ मुख्यता ¶
9
१०
से कथन है? पृ. ५९१
११५. तो फिर यँ किस गुणस्थानवर्तीं की प्रधानता है? पृ. ५२ गे
११६ ऐसे कैसे? पृ.५२
९. निश्चय सम्यग्दर्शन तथा स्वरुपाचरण चारित्र
, ११७ निश्चय सम्यग्दर्शन किसे कहते है? पृ. ५३ -
११८ वीतराग चारित्र के अविनाभावीभूत निश्चय सम्यग्दृष्टि साधु ही होते है,
ऐसा कोई प्रमाण है? पृ. ५५
+ ११९. प्रशमादि की प्रकटता को ही सम्यक्त्व व्यो नहीं कहते है? पृ. ५५ 4
१२०. क्या निश्चय सम्यक्त्व का कथन भी दो प्रकार से है? पृ. ५६ ने
१२१ यहाँ पर चतुर्थ, पंचम गुणस्थानवर्ती को तो निश्चय सम्यग्दर्शन माना है। §
स्पष्ट उल्लेख है कि - पृ. ५७
“* निज शुद्धात्सैवोपादेय इति रुचि रुपम् निश्चय सम्यक्त्वं
गृहस्थावस्थायां तीर्थकर परमदेव भरत सगर राम पाण्डवीदिनां
¢ विद्यते ( पप्र. २८९७९३२)
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