आध्यात्मिक - शंका समाधान | Aadhyatimik Shanka Samadhan

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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; न 29-02-94 १०८ प्रवचनसार तात्पर्य वृत्ति गाथा ८० के उत्थानिका वाक्य में कहा है कि अथ चत्तापावारंधं...... इत्यादि सूत्रेण यदुक्तं शुद्धोपयीग। भावे $ मोहादि विनाशो न भवति, मोहादि विनाश्ञा भावे, शुद्धात्म लाभो न भ भवति तदर्थ मेवेदानी मुपायं समलोचयति, पृ. ४९ . क्या अध्यात्म भाषा मेँ कथित *“ निज शुद्धात्म भावनाभिमुख रुप सविकल्प स्वसवेदन ज्ञान तथा आगम भाषा में कथित अधःकरण, अपूर्वकरण ओर १ अनिवृत्तिकरण रुप परिणाम एक है ?' पु. ५० ० ११०. यह कैसे? पु. ५९ १११ दर्शन मोह कौ क्षपणा विधि विषयक करण परिणाम तथा चारित्र मोह कौ ¢ क्षपणा विधि विषयक परिणाम क्याएक ही है? पु. ५९१ ११२ दर्शन मोह कौ क्षपणा कौन करता है? मिथ्यादृष्टि या उपशम सम्यग्दृष्टि? थ पृ. ५१ ८ ११३ दर्शन मोह की क्षपणा किन-किन गुणस्थानों में संभव है? पृ. ५९ & ११४. प्रवचनसार गाथा ८० कौ तात्पर्यवृत्ति मेँ किस गुणस्थानवतीं कौ मुख्यता ¶ 9 १० से कथन है? पृ. ५९१ ११५. तो फिर यँ किस गुणस्थानवर्तीं की प्रधानता है? पृ. ५२ गे ११६ ऐसे कैसे? पृ.५२ ९. निश्चय सम्यग्दर्शन तथा स्वरुपाचरण चारित्र , ११७ निश्चय सम्यग्दर्शन किसे कहते है? पृ. ५३ - ११८ वीतराग चारित्र के अविनाभावीभूत निश्चय सम्यग्दृष्टि साधु ही होते है, ऐसा कोई प्रमाण है? पृ. ५५ + ११९. प्रशमादि की प्रकटता को ही सम्यक्त्व व्यो नहीं कहते है? पृ. ५५ 4 १२०. क्या निश्चय सम्यक्त्व का कथन भी दो प्रकार से है? पृ. ५६ ने १२१ यहाँ पर चतुर्थ, पंचम गुणस्थानवर्ती को तो निश्चय सम्यग्दर्शन माना है। § स्पष्ट उल्लेख है कि - पृ. ५७ “* निज शुद्धात्सैवोपादेय इति रुचि रुपम्‌ निश्चय सम्यक्त्वं गृहस्थावस्थायां तीर्थकर परमदेव भरत सगर राम पाण्डवीदिनां ¢ विद्यते ( पप्र. २८९७९३२)




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