पक्का गाना | Pakka Gana
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
589 MB
कुल पष्ठ :
196
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)कान से पहले
कीचड़ में धेसे चलना-फिरना कठिन हो जातां हे । इन
डेरियों में से अधिकांश गिरधारौ दादा को हैं। दादा
बम्बई की भाषा में प्यार का नहीं, भय और त्रास का
शब्द हैं और 'मवालो' अथवा “गुंडा' का पर्य्ययवाची है,
किन्तु गुंडे या मवाली के साथ जिस गरीबी और मरभुक््खे-
पन का ध्यान आ जाता हैं, उसका 'दादा' शब्द से अधिक
सम्बन्ध नहीं--क्योंकि वम्बई में लखपती 'दादा' भी हैं
जिनकी अरदल में अन्य कई दादा उसी प्रकार तत्पर खड़े
रहते हें जिस प्रकार उस अन्तर्राष्ट्रीय दादा, हिटलर की
अरदल में गोरिंग और रिवन ट्राप--और जिस तरह उस
दादा-महान से दूर दूर रहनेवाले भी डरते थे, उसी तरह
यद्यपि गिरधारी दादा का साम्ाज्य भी इस सड़क और
इसके इर्द-गिर्द फैली हुई डेरियों तक ही सीमित है, फिर
भी घोड़बन्दर रोड से परे बसनेवाले धनी-निर्धन सभी
उससे खौफ खाते हैं और स्टेशन से आतें जाते समय उसे
“नमस्कार' करना अयवा एक विवश-सी मुस्कान ओठों
पर लाकर, उसका हालचाल पूछना आवदइयक समभते हैं ।
रहे इन डेरियों मे काम करनेवाले भैय्ये तो वे दिन
रात गिरधारी दादा को उन्नति ओर उत्यान को गाड़ में
बैलों सरीखे जुते रहते हैं । तबेलों को सफ़ाई और पशुओं
को रखवाली के साय साय, इघर दोपहर और उधर आधी र
रात को उठकर दूष दोहने से लेकर, (इधर प्रभात और. “ ८.“
उषर सन्च्या से पहले-पहले ] शेर बम्बई' के विभिन्न
कु स्टेशनों तक उसे पहुंचाने का काम भी करते हें। नॉंद
म आती हैं तो वहीं लोकल ट्रेन को खुर्रो सीटों, प्लेटफ़ा्मों
3 था. फुटपायों पर ऊँघ लेते हैं और भूख लगती है तो
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