काव्य अमृत शरणा | Kavya Amrit Sharanaa

Book Image : काव्य अमृत शरणा  - Kavya Amrit Sharanaa

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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१६ श्रीमन्‌ राजनंद्र काञ्य-ममुत-सप्णां थुद्ध भाव मुनमां नथी, नथी स्व तुन रूप; नयौ लघुता के दीनता, थे कद परम स्खूप? २. हये मने एक आपने ज आधय के. है फारुपयमूर्ति, मारामां अनंत दोप छे. पण आप निर्दोष प्रभुनु शरण, उपासना, भक्ति ए ज मारे निर्दोष थवा मादे सर्वोत्तम अनन्यं अवद्वन, आधार छे. १ २ स्वेदेन मू तो अनचान, माग खक्नु अभानते > तेनो जे उपाय भात्मज्ञान के शुद्ध सम्यग्दसेन ते झुद् भाव विना प्रगे नहि- प्रतु निरेतर छम अञ्युभमां ज निमग्न एवा मने अद्र भावनी प्राप्ति थती नथी. तेम झुभाझुभ भावने तजी ऐक शुद्ध भावमां ज निरंतर रमणता करवा येग्य छे एवो ठक, एवो पुर्या, एवो उपयोग रदेतो नथी. ते द भावनो प्रापि म तव्व्छटि साध्य थवी जोईए. “ चित्तनी शुद्धि करी, चेतन्यनुं अवलोकन--धर्मव्यान करु. आत्मसाधननी प्रेणीए्‌ चइ. अनादिकाष्डना दषिकरमनु भूल, ने स्थिरता करवो. ”--श्रीमदू लघुगज स्वामी उपदेशामृत. समस्त सचराचर ज जगत पना ज्ञानमां प्रत्यक्ष मासी स्वं छे तेथी ज्ञान अपेश्ञाए आप लोकालोऊ व्यापक छो. तेथी ज्यां जोर त्यां सवेमां तुंहि तुंढि, ज्ञानस्वरूप एक आपने ज, झुद्ध आत्माने ज, जोवानी इष्टि साव्य थवी जोईए ते धती नथ). तेथी ज्ञाता इष्टा एवों जे पोतानो शुद्ध आत्मा तेना उपर भाव, उपयोग स्थिर थतो नथी, अने ते स्थिरता विना झुद्ध भाव के स्वात्मानुभूति केम प्रगटे ? सर्वमा तुज




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