पश्चिमी दर्शन [एतिहासिक निरूपण ] | Paschimi Darshan (atihasik Nirupan)

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Paschimi Darshan (atihasik Nirupan) by दीवानचन्द्र - Diwanchandra

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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सुकरात से पहुले 4 मापने का अर्थ यही है कि उसमें किसी विशेष इकाई की संध्या निदिचित की जाय । हम कहते हैं--छड़ी तीन फुट लम्बी है; चार छटाँक भारी है । एक फुट में १२ इंच होते ह गौर छर्टाक मेँ पाच तोछें होते हैं । जल भर वायु जिन्हें थेल्स और एनैविस- मिनिज् ने जगत्‌ का मूठ कारण बताया था, तौले भौर मापे जा सकते हूँ । संस्या इन दोनों से अधिक मौलिक है । हम ऐसे जगत्‌ का चिन्तन कर सकते हैं, जिसमें रंग-रूप मौजूद न हो, परन्तु हम किसी ऐसे जगत्‌ का चिन्तन नहीं कर सकते, जिसमें संख्या का अभाव हौ 1 पाइथेगोरस (छठी चती ई० पु०) ने संख्या को विद्व का मूल तत्त्व वयान किया । जल, वायू आदि को हम देखते हैं, उन्हें छू भी सकते हैं । परन्तु संख्या किसी शञानेन्द्रिय का विपय नहीं । इस तरह पाइथेगोरस ने एक अदृदय, स्पृश्य तत्व को मूर तत्त्व का स्थान देकर दानिक विचारमे एक नया भं प्रविष्ट करः दिया 1 कर एक मौर अनेक' का विवाद भी दार्यनिकों के लिए एक जटिल प्रदन था । पादथेगोरस ने संख्या के एक मोर अनेक में समन्वय देखा । १ इकाई है । कुछ इकाइयाँ एक साथ लिखें । यहाँ वहुत्व या अनेकत्व प्रकट हो जाता है । ५ की स्थिति वया है? यह एक है, या बहुत ? इसमें पाँच इकाइयाँ सम्मिलित हैं; इसलिए यह अनेक है । यह विखरी हुई इकाइयों का समूह्‌ नहीं, अपितु एकत्व इसमें विद्यमान हैं। इस तरह संख्या में एक और अनेक का समन्वय है । -श्ंसार में ट्म अनुरूपता, क्रम ओर सामञ्जस्य देखते ह । यह सव संख्यासे सम्बद्ध हं । हम कटतते है--मनष्य का दारीर सुडौरू है; इसके अखं में अनुरूपता है । इसका अथं यही है कि इसके अद्धो को विक्ेप संख्या से प्रकट किया जा सकता है । क्रम क्या है ? हम कुछ पदार्थों को क्रम में रखते हैं । इसका अर्थ यह है कि जो अस्तर उनमें पाया जाता है, वद्द विद्ञेप संख्या से व्यवत किया जा सकता है । सामब्जस्य का अच्छा उद्वाहुरण राग में मिलता है, गौर्‌ राम का सम्बन्ध संख्या से स्पप्ट ही है । पाइथेंगोरस का ख्याल था कि विष्व के अनेक भागों की गति में एक राग उत्पन्न होता है, सौर वह्‌ राग मानवी राग से पूर्णतया मिलता है । शेवसपियर नें एक नाटक में इस ख्यारु की गोर संकेत किया है -- 'जैसिका ! वैठो ! देखो, -माकाञ्च में सोने के टुकड़े कंसे घने जड़े हुए हैं; जिन तारों को तुम देखती हो, उनमें छोटें से छोटा तारा भी अपनी गति में देवदूत की तरह




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