मालिका | Malika
श्रेणी : कहानियाँ / Stories, दंतकथा , किस्सा / Fable
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
12 MB
कुल पष्ठ :
520
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)--~प्णप्टुव्धर -
“नहीं तो सा
“फिर 0
धिर क्या 077
“इतने चीण क्यों हो गए हो ? इतना सुरमा क्या गए
हयो (+
हृदय इसका क्या उत्तर देता? वह कुछ नददीं कह
सका । इस कोलाइल-भरी नीखता से श्रणय की विह्वलता
नाच उठी ।
हृदय बच्चों की तरह चुपचाप सिसक रहा था । प्यार
की ऐसी सुद्दाग-भरी घडी में कोई दुखिया और कर ही क्या
सकता है १ वहं कैसे वताता कि इतने दिनों के भीतर उस
पर क्या बीती थी ! इस वीच में न उसने सरपेट खाया थाः
न कभी नींद भर सोने का दी अवसर पाया था । तिस पर
भी उसे आशा नहीं थी कि उसका पानों खाट से उठ कर
एक चार फिर उसे गले भी लगा सकेगा । बीमारी की सय-
ङकरता ने चसे कायर वना दिया था । अविश्वास और
आशङ्का ने उसकी सारी शक्ति छीन ली थी । मगर उसे इन ` `
बातों का जैसे कुछ पता ही नहीं था। अपने कष्टो कीन
उसे जानकारी थी, न परवाह । फिर वह अपनी क्षीणता
का कारण ही क्या बताता ?
प्रणय ने स्नेह-विह्लल होकर कदा--समस गया हीरो
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