मालिका | Malika

Malika by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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--~प्णप्टुव्धर - “नहीं तो सा “फिर 0 धिर क्या 077 “इतने चीण क्यों हो गए हो ? इतना सुरमा क्या गए हयो (+ हृदय इसका क्या उत्तर देता? वह कुछ नददीं कह सका । इस कोलाइल-भरी नीखता से श्रणय की विह्वलता नाच उठी । हृदय बच्चों की तरह चुपचाप सिसक रहा था । प्यार की ऐसी सुद्दाग-भरी घडी में कोई दुखिया और कर ही क्या सकता है १ वहं कैसे वताता कि इतने दिनों के भीतर उस पर क्या बीती थी ! इस वीच में न उसने सरपेट खाया थाः न कभी नींद भर सोने का दी अवसर पाया था । तिस पर भी उसे आशा नहीं थी कि उसका पानों खाट से उठ कर एक चार फिर उसे गले भी लगा सकेगा । बीमारी की सय- ङकरता ने चसे कायर वना दिया था । अविश्वास और आशङ्का ने उसकी सारी शक्ति छीन ली थी । मगर उसे इन ` ` बातों का जैसे कुछ पता ही नहीं था। अपने कष्टो कीन उसे जानकारी थी, न परवाह । फिर वह अपनी क्षीणता का कारण ही क्या बताता ? प्रणय ने स्नेह-विह्लल होकर कदा--समस गया हीरो २ १७




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