सरगम | Saragam

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Saragam by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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साली घोठत, भरा हुमा दिलक्ष १६ पुरानी परम्परा की सो दें । हम इंसानों के नहीं, सयवरों के पुजारी हैं। भाज दिल्ली में मिर्जा गालियां पिवचर चल रही है । इस तस्वीर की गहानी इसी दिल्‍ली में मोरी गेट में बेटकर सटो ने सिसी थी । एक दिन हुम मठों दी सस्वीर भी दनाएगे भर उससे लाखो रपये कमाएगे, जिम तरह भाज हम मटों की किताबों के जाली एडीशन हिन्दुस्तान में सापनछापकर हजारों रपये बम रहे हैं । थे रपये जिनकी सटों को भपनी शिस्दगी में सख्त श्रत यी, वहे व्यये धान भी उमकी वीवी श्रीर वश्व कौ गरीडी भ्रौर जिल्नते मे वभा सकते ह । मगर हमे ठेसी गलती नही बनती । भ्रगर हम धक्मन देः दिनोमे चावल की कीमत वद़ाकर हृजरारो इमानोके सून से झपना नफा बढ़ा सकते हैं तो कया इसी मुनाफे के लिए एक गरीव लेखक की जय नहीं कतर सकते । मटो ने जब 'जेवकतरा' लिखा था, उस समय उसे पता नहीं था कि एक दिन उसे जेवकतरों की एक पूरी की पूरी कौम से वास्ता पड़ेगा । मंदी एक बहुत बड़ा गाली था । उसका कोई दोस्त ऐसा नहीं था, जिसे उसने गाली ने दी हो । कोई प्रकाशक ऐसा ने था, जिसमें उसने लडाई मोल न ली हो । कोई मालिक ऐसा न था, जिसकी उस्ने बेइफजती से की हो। बद्ाटिरि वह तरवकीपसदों से खुश महीं था, ने मर तरवकीपसदी से । न पाकिस्तान से, न हिन्दुस्तान ये । मे श्रंकप साम रो, ने रूस से । जाने उशकी छटपटाती, बेकरार, दैचैन रह कया चाहती थी । उसकी सवान बेहद कडवी थी । अंदाजवयां था तौ करीना श्र करीता, नद्तर की तरह तेज थौर बेरहम । लेकिन थाप उसकी गाली को, उसवी कडवी जवान को, उसके तेज, नुकीले, कंटीले शब्दों को ज़रा-्सा खुरघकर तो देखिए; श्रदर से जिन्दगी के सौठा-सौठा रस टपकने लगेगा । उसको नफरत में मोहब्बत, उसके मंगेपन में छिपाव, वदच- लनभीरती की दास्तानों में उमके भदव की मर्यादा छुपी हुई थी । न्दम मे मो हे इंगाफ नही किया, लेकिन इतिहास जरूर उससे इसाफ करेगा । मरी चयालीन साल मी उम्र में मर गया । भमी उरादे कुछ वहन




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