संगीत शिक्षण और शिक्षक | Sangit Shiksha Or Shikshak

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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संगीत और संगीत-शिक्षक वियय के प्रत्येक सण्ड को सभी जातिएं एव ब्पक्तियों के जीवन में सगीत बा संबंध स्सो से स्लो रुप में सपदट दिपसाई देता है / मनुष्य के जर्प से लेकर उम मृत्यु पंत समीत का. ऐसा रिदता जुदा हुआ है कि वह उसे किसी भी दशा मे पृथक मही भर पश्ता। मितत व्यक्ति के जीवनम संगीत नहीं, उसे बिना सींगन्यू द के पु तक बी सना दी गई है । वास्तव में देखा जाए तो संगीत केवल सुनने-गुनाते की कला नहीं है । पह तो मनुष्य के जीवन से सब धित भानग्दतत्व है, जिसके द्वारा बहू प्रपने भावों की घमिव्यक्ति नाघि्याजर करता है । गुरू दारा दी गई समीत-दिक्षा से इसके मैद्धाम्तिक पद के शान में वृद्धि होती) जिन विद्वानों ने सगीत के किसी भी पक्ष पर साधना के द्वारा झपना पधिकार ध्ाप्त कर लिया है, वे ध्रपने ज्ञान को भन्य व्यक्तिभ्यो तक पहुंचाने का प्रयाप्त गरते हैं । ऐसी किया को विद्वानों ने शिश्ना बहा है । सगोत की विविध ध्वनियों का जव कोई व्यक्ति भनुगरण कर लेता है बढ़े उगका प्रायोपिक पक्ष कहलाता है । सपीत की यह प्रायोगिक-फ़िया बिना मिल्लाये भी व्यक्ति ग्रहण कर सता है क्योकि यह पक्ष मनुष्य जीवन के ग्रति निकट है किन्तु सगोत के शास्थरीय-पक्ष के लिये दिशा- निदेशक को धावश्यकता स्देद रहती है । इस प्रकार हम देखते हैं कि सगीत के प्रायोगिक पक्ष का प्रत्येक व्यक्ति को प्रत्येक श्रवस्था से धनिष्ठ संबंध है । गायन वादन तथा नतेन इन तीनों बलामों के समादेश को संगीत कहा गया है । गायन कला में कूष्टर-संगीत आता है । वादन-कला के दो भेद हैं--स्वर- १




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