भाषासारसंग्रह | Bhasharasangrah Part- 1
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
3 MB
कुल पष्ठ :
198
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand){ ११)
तिः्काल जब दासो समाचार पूछने भाई ते भ्रापने कषा
हे दमारे जीवन के नाटक का प्रोग्राम नित्य नया छप रदा है,
तसके पहिले दिन ज्वर की, दूसरे दिन सूख की थार तीसरे
इन खाँसी की तीन ता हो चुकों, अब देखें लास्ट नाइट कब देती
' । उसी दिन राग इतना घढ़ा कि अन्त का रात के १० घजे
पेकृप्ण, थीराम कद्दते कहते यदद भारतेन्दु भारत के दुर्भाग्यरूपी
पघाच्छन गगन में घिठीन है। गया सार श्रपनी कौसुदरीरूषी
प्रक्षय कीर्ति का चिकादा उस समय सक के लिए स्थिर रख गया
के जब उठी भूमण्डल पर दिन्दी भाषा द्ग नागरी अक्षरं का
छाप न हे ।
त. भूचाल का वैन
` धरप्यीन समयक टाग भूचाखकां कारम नदीं जानते थे
पार उस समय के लेखक ने भी भूकम्प का और समुद्र के घटने
श्रढ़ने तथा पृथ्वी के ऊँची नोची दाने का कुक वणन नौ करिया,
परन्तु भूचाल से जा जा दानियाँ बस्ती का इु'ई उन्हे लिखा है।
ज्य,से हुक साइव ने अपने वियार से भूकम्प के कारणों के प्रकट
किया तब से लोगों का इसका ज्ञान हुआ |
“सन् १६९२ ईस्वीं में जमैका नाम के टापू में पेसा भूकम्प
मा कि धरती समुद्र क्षी नाई लद्वराने चार हिलने ठगी और
{कदं कदी यष पसो धथक्र उठी कि बह बडे दरार समे फटे
कर के यह लेख रोद्ध साद्व लिखित भूचरतरदर्ण स एकया गवा & 1.
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