नारीसुदशाप्रवर्त्तक [ भाग 4 ] | Narisudasha Pravarttak [ Part 4 ]
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
1 MB
कुल पष्ठ :
56
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)॥ १५
४३ जे सुख समय परमात्मा को भुलती है वच शीघ्र दो दुःख में
पड़ती दे
४४ ना घन का मद्दालाम करती ह वड सन्तापं का कौप खाती है ॥
१५ जे दीनों पर दया नहीं करती वच् कठारचित कद्दाती ३ ॥
५६ जे स्वी पति की देवा नद करती जर आन्नाभङ्ग करती दे उस-
का व्रत दान पष्य पना सव ब्रा ई ॥
१० सब्र से उत्तम ध्मेधोला पतिवृता वद स्तो है ले परपु का ध्यान
स्वपुन मे भी नदद करती ॥
पद ना स्त्री 'अधर्म से हर कर पराये पप को चाचा तारं या भाई
समान नानती ३ षह भीं उत्तम ३॥
५४६ लो स्वी कुलकान या अपवाद के मय से पाप कमे के ददती रै
यदह मध्यमां गिनी लाती ह ॥
६० वद्ध सनी नीच गिनी लाती है ने अवसर न मिलने जरी राला प्र-
' ला के दयडमय या व्यमिचारी पुरुष न मिलने क्ते कारण सुकर्म से
बची हुई दै॥ `
६९ लीवमान के लिये कामदेव वहा धच ह इसको आंधी को वयुले
` भे पद्ने षे सारी उमर फा सुख उद् कर मु पर घुल सी छा ला-
ती है ॥
६२ ला सची सांसारिक मेणों में मग्न सार पिपत्ति में रोती है धद पे
य्यवती नष्ं ष्टदलातो ॥
६३ कामः फ्रोध, जोम, में का याचित वतीय रवा दन को श्म
घिकाई बड़ी दःखदाई है ॥ =
६४ ले स्वी हयो, दप, क्तो, लड़ाई, दाह,युन्, दल, नाराज, लगा-
शूतरापन आदि औओगुनों से यची इै और पति को सेवा और पममे.
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