स्वर्ग का खजाना | Swarg Ka Khajana

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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७ स्चर्मकां खजाना ५] सद्व ३ प्रथम धडचने फो सहफर्‌ भी भक्तं यनो, समय श्रानैपर्‌ श्नुकूततता श्चपने आपह प्रप्त हो जायगी चुत से मनुष्य कने हं कि यदि भुफे धोदासा मी पैसा मिल जाय तो मैं हाथ हाय धोकर एकाम्तमें भजन करें । कुछ लोग कदते हैं कि लडफा यड़ा हो ज्ञाय शरीर सघ समभ से हो मैं शांति पूर्वक भजन करू, फुछ कहते हैं कि मेरी माँ या चाप शोगप्रस्त टिं, इन्दे कुछ फुरसत हो, तथ में एकान्त में भजन करणा | कुछ कहते हैं हवा गोव ही परपदे, दहरे प्रदुष्य युत्ते भननद्ो नदी क्ते देते, युय भ शुः पापा डाल देने हैं, इसलिंप जय में किसी शीर्ष जाऊंगा तप पकाम्तमें मशन बरूंगा, बुछ लोग कदते हैं कि मन चारनेका तो धुल घन करता टै विस्तु करूं कया? मेरा घंघा इतना जराय हैं दि पर म्िनटेकी मो फुर्सत महीं मिलती अर बाप ऐसा दै कि छोड मी सदीं चरता । कुछ कहते दि हि | हमारे परके लोग इतने खराब हि कि उन फुछ धात हो मठ । पूों, थोड़ी देर मो दुपश्वाप दैटने नष देने, घरे! शत » रोटी मी भद्दीं खाने देन, तय भज्नवी लो धात हो जाने दो ! बुछ लोग बहते हैं दि; दमारो मोबारो पसो एराध दि दोषा! ¢ ऊपर सात टी गहा उटतो, शः चोर उपाय हो वया दे 1 ॥ ष्ष्पायषापमन होता दे कि. घड़ी दो घडी सस्संग कर, ' बिम्लुनरीय एसा पूरा हैं कि झचसर हो भी घिलता, इस से ६ धष भजन धरता सप्र पिलदके, शस प्रहमरश्यो नोस्तेशी € ्रोजमे ह दिम्तु सए तदः रताद नद्‌ हन ६ । हदष्टेतं ! बदते हैं दि: झमी देर दै, जरा चौर दृध हा अदा मरन




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