शब्दों का घूंघट | Shabdo Ka Ghunghat

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Shabdo Ka Ghunghat by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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चचन बद्ध भर पुनः लौटता हूं प्रो मेरे निर्वन्ध सदसे श्रलग मोगे हुए क्षण तुम्हें यट्दी छोडता हूं । जाता हूं यह सोचकर तुम्हारे पास पुनः लौट थ्राऊंगा , प्रगर कटी भर्य हीन प्रयास के प्रवाह में वदने से बच पाऊगा । कभी कमी इस बीच याद मुझे भाते रहना , वचन जो दिया है तुम्हें उसे बताते रहना , धीरे से मेरे मन में गुनगुनाते रहना , गीतों के साज को हसके से वजातें रहना । - १६




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