उलझे बच्चे | Ulajhe Bacche

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Ulajhe Bacche  by जगदीश सिंह - Jagdish Singh

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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८७) लाला किशोरी लाल स्कूज़ के मुख्याध्यापक को एक लम्बी चौड़ी शिक्षायवी चिट्ठी लिखते हें । छुट्टियाँ समाप्त दोने पर दोनों लड़कों को छात्रावास से इटा लिया जाता है और शदर में एक मकान किराए पर लेकर उनकी माँ को उनके साथ भेज दिया जाता है ताकि वदद स्वयं उनकी देख-भाल्ल कर सके। सत्या और उष भी अपनी माँ के साथ श्र के मकान में चली 'आाती हैं | सन्हूं भी ब्कून में दाखिल करा दिया जाता है। कैहाश घर में यदा प्रत्न रता है, परन्तु सत्या, यद्दां भी शिक्षा की छोर से इतनी ही उदासीन है । सारे परिवार के शहर में चले छाने के कारण लाला किशोरी लाल का मन गाँव में नद्दीं लगता । धर, शरमं नडी खी षो बाज़ार से छाने-पीने को सामभो तथा 'अन्य सामान मंगवाने में थढ़ी 'अमुविधा रदती है । बाएं बच्चे स्कूल चले जाते हैं । पर कर भी स्कूल का काम करने में लगे रदते हैं । उनकी माँ दाल, चावल, नमक, लकड़ी और 'झनाज आदि मंगाने के संकट से परेशान रदती हे । गर्मियों ढी लम्बी छुट्टियां धोने पर सारे बच्चे अर चनकी माँ फ्रि गांव बारिस झा जाते हूं । दसराज प्रत्येक परत्र मै उत्तीण हो जाता है, परन्तु लाला जी की ददािक इच्छा यद दे कि बह प्रयम डिविजन में सफल हुआ करे । कैलाश घर में प्रसन्न तो रददवा इ परन्तु दद पढ़ने में कोई प्रगति नददीं करता! सत्या जैसी पदले थी बैसी दी अब भी है। ऊपा यहां भी अपनी कहा मे प्रथम रही है । गांव में बट्‌ हिन्दी पदृवी यी यहां ष्ट




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