वेदान्त रहस्य | Vedant Rahsya

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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विद्या का प्रचार आरुमभ होता है । उस प्रचार-कार्य मे सहायता करते हैं पृव॑ंफल्प के सिद्ध महात्मा लोग. जोकि प्रलय-पयोधि से अपनी अपनी|जान-सवित को अछूती बचाये रहकर उठते हैं। इन लोगों को शिष्ट कहा जाता है। ये लोग पूर्वकल्प के अवशिष्ट अर्थात्‌ राशि हैं | युगान्ते5न्तर्हितान्‌ वेदान्‌ सेतिहासान्महर्पय- । लेमिरे तपसा पूर्व समादिष्टा स्वयभुवा ॥--शंकरोद्शत वचन युगान्त मं वेद-इतिहास मभ्ति जो बिता झन्तहित हो गई थी चही विद्या महर्पियों को, श्र्मा के आदेश-क्रम से, तपस्या द्वारा पुन प्राप्त हुई। व्यास छोर वशिष्ट प्रभति इसी तरह के “शिप्ट' महापुरुप है| वे समार के भले के लिए फिर देह धारण करके, शिप्य-प्रशिग्यो की परम्परा द्वारा, जगत्‌ मे ब्रह्मविद्मा का पुन- प्रचार करते हैं । इस प्रकार से एक मन्वन्तर के वाद दूसरे सन्वन्तर में, जगत्‌ में, श्रह्मविद्या का प्रवाइ लगातार बहता रहता हैं । इस कल्प में घ्रह्मा से किस प्रकार ब्रह्म विद्या का प्रचार हुआ था, इसका विवरण मुडक उपनिपद्‌ मे इस प्रकार दिया छुआ है-- घ्रद्मा उेवाना प्रथम” संवथ्ूच विश्वस्थ कर्ता सुवनस्य गोश्ा । स ब्रद्मविदयां सर्व्वविद्याप्रतिष्ठां झथव्वाय उपेद्पुत्नाय शाह ॥ अथर्व्वंणे यां प्रवडेत घह्मा&थर्व्या ता पुरोवाचाड़िरे घद्ाविद्याम्‌ । स भारद्वाजाय सत्यवाहाय प्राह भारद्वाजोडज्विरसे परावराम्ु ॥ --सुण्डक 91919-२ अर्थात्‌ विश्वस्रष्टा जगदुभर्ता श्रादिठेव घ्रह्मा ने सारी विद्याओओं की श्ाश्रयमूत ब्रह्मविद्या अपने बडे बेटे शथर्वा को बतलाई । वही चहाविद्या अधर्वा ने पुराकाल मे अड्डिर को प्रदान की । अज्जिर ने वही शष्ठ विया सारद्ाज सन्ययाह को और सत्यवाह से आद्धिरा को दी तथा न




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