वेदान्त रहस्य | Vedant Rahsya
श्रेणी : पौराणिक / Mythological
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
6.5 MB
कुल पष्ठ :
256
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)विद्या का प्रचार आरुमभ होता है । उस प्रचार-कार्य मे सहायता करते
हैं पृव॑ंफल्प के सिद्ध महात्मा लोग. जोकि प्रलय-पयोधि से अपनी
अपनी|जान-सवित को अछूती बचाये रहकर उठते हैं। इन लोगों
को शिष्ट कहा जाता है। ये लोग पूर्वकल्प के अवशिष्ट अर्थात्
राशि हैं |
युगान्ते5न्तर्हितान् वेदान् सेतिहासान्महर्पय- ।
लेमिरे तपसा पूर्व समादिष्टा स्वयभुवा ॥--शंकरोद्शत वचन
युगान्त मं वेद-इतिहास मभ्ति जो बिता झन्तहित हो गई थी
चही विद्या महर्पियों को, श्र्मा के आदेश-क्रम से, तपस्या द्वारा पुन
प्राप्त हुई। व्यास छोर वशिष्ट प्रभति इसी तरह के “शिप्ट' महापुरुप
है| वे समार के भले के लिए फिर देह धारण करके, शिप्य-प्रशिग्यो
की परम्परा द्वारा, जगत् मे ब्रह्मविद्मा का पुन- प्रचार करते हैं । इस
प्रकार से एक मन्वन्तर के वाद दूसरे सन्वन्तर में, जगत् में, श्रह्मविद्या
का प्रवाइ लगातार बहता रहता हैं ।
इस कल्प में घ्रह्मा से किस प्रकार ब्रह्म विद्या का प्रचार हुआ था,
इसका विवरण मुडक उपनिपद् मे इस प्रकार दिया छुआ है--
घ्रद्मा उेवाना प्रथम” संवथ्ूच विश्वस्थ कर्ता सुवनस्य गोश्ा ।
स ब्रद्मविदयां सर्व्वविद्याप्रतिष्ठां झथव्वाय उपेद्पुत्नाय शाह ॥
अथर्व्वंणे यां प्रवडेत घह्मा&थर्व्या ता पुरोवाचाड़िरे घद्ाविद्याम् ।
स भारद्वाजाय सत्यवाहाय प्राह भारद्वाजोडज्विरसे परावराम्ु ॥
--सुण्डक 91919-२
अर्थात् विश्वस्रष्टा जगदुभर्ता श्रादिठेव घ्रह्मा ने सारी विद्याओओं
की श्ाश्रयमूत ब्रह्मविद्या अपने बडे बेटे शथर्वा को बतलाई । वही
चहाविद्या अधर्वा ने पुराकाल मे अड्डिर को प्रदान की । अज्जिर ने वही
शष्ठ विया सारद्ाज सन्ययाह को और सत्यवाह से आद्धिरा को दी तथा
न
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