ब्राह्मण की गौ | Brahman Ki Gau

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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करने के लिये थे दोई सायघानी रखने का यत्र नद्दीं दास्ते 1 इसलिये स्यभौवतः श्यपने पूवं संस्कारो (लौकिक सस्व के संस्कारौ) फे वश्च दोकरडुदुकाषुय श्रयं कर डालते ई। अस्तु, ^ इस सूक्त में मो-शय्द्‌ का यमिभराय तो निश्चय से यारी ष्ठी है, पर इसफ्ा यद मतलब नहीं फि गो-शब्द छे न्य घर्गी का इससे कुछ सम्बन्ध नहीं । झसल में दे गो-शम्द के जितने झा हैं, उन सब का ही आपस में सम्वन्ध है । इस सम्दन्घ को इस झागे दिलायेंगे। यहाँ इतना कदना है कि ययपिं यद्दों पी” शब्द पाणौ कलिये ही प्रयुक्त इुझा है तो भी इन सूरत में दस अर्थ के लिये याणी के भग्य वैदिक पर्याथवाची शब्द्‌ ( सरस्यती, गी झादि ) या. 'याणी' शब्द दी सपट न रख कर जी 'बाणो' फे लिये 'मी शब्द युक्त शुषा दः „ चद एक विशेष तयोजन के लिये है। इस सूक्त में जो गो शब्द का झमिरधाय है, उसे यदिं दम झाज फल शी अपनी मापा योकन्खोक प्रकट करना चाहें तो म प्याणी-झूप गाय' इस तरह श्मधिक्से श्रयिक ठीक रुप में बोल सक्से है! यद माव इख खक में 'बाणी' ण्ड रख कर कभी नही धकट किया जा सफता था। न्यौ दण्द मै षहो यह भाच मरा षा दे | मौ-छप्द के #




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