परमार्थ विचार | Parmarth Vichar

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Parmarth Vichar  by गिरिधरलाल शास्त्री - Giridharlal Shastri

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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श्र परमार्थ-विचार कहा तजे तत को विम. मन फो विम श्रपार / मिम तियो भन को विम, त्यागी जिसुवान सार ॥ जवारमल कंदई देशणोक ( १९) । संसार मिथ्या है, ईश्वर ( श्रह्म ) सत्य दे, अणी रो प्रत्यत प्रभारा खभ्र-छषि है । यदि भयुष्य संसार ने सत्य माने और वणी री भावना करे ज्यूँ खम पदार्थ री भावना सत्य करे तो वो भी संसारचत्‌ सत्य ही दी खेगा, था निमल चित्त करवा पर सजुप्य ने निखय च्हे' शके है। दीखे भी है, के उन्माद रोगी, मी ब्हे' चाँ वाताँ ने भी सत्य माने है । इन्द्रजाव् मेस्मेरीजम में भी यूँ ही है । असत्य सत्य दीखे है। संयम शूँ योगी नवीन अन्त/करण --चिश्वामिघजी नवीन संसार चणायों यूँ ही-( बणाथ शके है? ) यो भी है । ईश्वर री इच्छा मात्र है, सो बणी री उपसना शुँ छूट शके । (२०) प्राणायाम नो उत्तम साधन है, चणी में रोगादि ब्हेणो संभव है, परन्तु युक्ति शूँ करे तो सब रोगों रो नाश ने परम सुख प्राप्त रहे ।




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